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Up ncert class 10 science chapter 15 management of Natural Resources प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन notes in hindi

 Up ncert class 10 science chapter 15 management of Natural Resources notes in hindi


 कक्षा 10 वी विज्ञान अध्याय 15 प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन का सम्पूर्ण हल





प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन Management of Natural Resources






महत्वपूर्ण बिंदु


1.हमारे संसाधनों, जैसे वन, वन्य जीवन, कोयला एवं पेट्रोलियम का उपयोग सम्पोषित रूप से करने की आवश्यकता है।


2.कम उपयोग, पुनः उपयोग एवं पुनः चक्रण की नीति अपना कर हम पर्यावरण पर पड़ने वाले दबाव को कम कर सकते हैं। 



3.वन सम्पदा का प्रबन्धन सभी पक्षों के हितों को ध्यान में रखकर करना चाहिए।


4.जल संसाधनों के संग्रहण हेतु बाँध बनाने में सामाजिक-आर्थिक एवं पर्यावरणीय समस्याएँ आती हैं। बड़े बाँधों का विकल्प उपलब्ध है।


5. यह स्थान क्षेत्र विशिष्ट है तथा इनका विकास किया जा सकता है जिससे स्थानीय लोगों को उनके क्षेत्र के संसाधनों का नियन्त्रण सौंपा जा सके


6. जीवाश्म ईंधन, जैसे कि कोयला एवं पेट्रोलियम, अंततः समाप्त हो जाएँगे। इनकी मात्रा सीमित है और इनके दहन से पर्यावरण प्रदूषित होता है. अतः हम संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग की आवश्यकता है।


7.वे पदार्थ, जो मानव के लिए उपयोगी हों अथवा जिन्हें उपयोगी उत्पाद में रूपान्तरित किया जा सके या जिनका उपयोग किसी उपयोगी वस्तु के निर्माण में किया जा सके, संसाधन कहलाते हैं। वे संसाधन, जिन्हें प्रकृति से प्राप्त किया जाता है, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं। प्राकृतिक संसाधन प्रकृति में वायु, जल, मृदा, खनिज, जन्तु तथा पादपों के रूप में संग्रहित होते हैं।


प्राकृतिक संसाधनों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। 



(i) अक्षय संसाधन ये प्राकृतिक संसाधन असीमित मात्रा में पृथ्वी पर उपलब्ध हैं।

उदाहरण वायु, मृदा, जल, सौर ऊर्जा, आदि। 



(ii) क्षयशील संसाधन इन प्राकृतिक संसाधनों की मात्रा सीमित है। इनका अधिकतम एवं अनियन्त्रित मात्रा में उपयोग करने से ये अन्ततः पूरी तरह समाप्त हो जाएँगे। उदाहरण खनिज, कोयला, पेट्रोल, आदि।



प्राकृतिक संसाधनों का प्रबन्धन तथा संरक्षण


पृथ्वी की सम्पदाएँ या संसाधन सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं। मानव जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण, सम्पदाओं या संसाधनों के लिए माँग दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। अतः इनका उचित प्रबन्धन सुनिश्चित करता है, कि प्राकृतिक सम्पदाओं का विवेकपूर्वक उपयोग किया जाए, ताकि वे वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करें और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बनी रहें।


नोट – गंगा का प्रदूषण तथा गंगा कार्य (सफाई) योजना गंगा हिमालय में स्थित अपने उद्गम गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी में गंगासागर तक लगभग 2500 किमी. की यात्रा तय करती है। इसके किनारे स्थित उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल के 100 से अधिक नगरों का औद्योगिक कचरा वाहित मल, घरेलू अपशिष्ट, रसायन, कीटनाशक, मल-मूत्र, आदि इसमें मिलता जाता है, जिसके फलस्वरूप इसका स्वरूप नाले के समान हो गया है। इसके अतिरिक्त इसमें प्रचुर मात्रा में अपमार्जक (Detergents), मृत व्यक्तियों की राख, रंजक, आदि भी प्रवाहित किए जाते हैं। इसके कारण इसका जल प्रदूषित होने लगा है। इस प्रदूषित जल के कारण इसमें अत्यधिक संख्या में मछलियाँ तथा अन्य जलीय जीव मर रहे हैं। इसे रोकने के लिए गंगा कार्य (सफाई) योजना सर्वप्रथम अप्रैल 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी द्वारा प्रारम्भ की गई। यह कार्यक्रम बड़ी उमंग के साथ प्रारम्भ किया गया था, लेकिन यह नदी के प्रदूषण स्तर को कम करने में असफल रहा। इसकी लागत 901.71 करोड रूपए तथा समयावधि 15 वर्ष रखी गयी थी। कोलीफॉर्म जीवाणु का एक वर्ग है, जो मानव की आँत में पाया जाता है। गंगाजल में


इसकी उपस्थिति से जल प्रदूषण का स्तर अधिक हो गया है, जोकि जल जनित रोगों के कारण है।


वर्तमान में प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग एवं उनके द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट के उत्पादन को कम करने हेतु 3R पद्धति का उपयोग किया जाता है। तीन R अर्थात् Reduce (कम उपयोग करना), Recycle (पुनः चक्रण) तथा Reuse (पुनः उपयोग करना) का पालन करके हम प्राकृतिक संसाधनों का सही प्रबन्धन कर पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं।


1. कम उपयोग करना


इससे तात्पर्य है, कि क्षयशील संसाधनों एवं अपशिष्ट उत्पन्न करने वाले पदार्थों का कम से कम उपयोग करना, जैसे- जल को व्यर्थ नहीं बहाना, प्लास्टिक का कम उपयोग करना, आदि। 



2. पुन: चक्रण


प्लास्टिक, काँच, कागज, धातु, आदि जैसी वस्तुओं का पुनःचक्रण करके उपयोगी वस्तुएँ बनानी चाहिए।


3. पुन: उपयोग करना


यह पुनः चक्रण से बेहतर साधन है, क्योंकि इसमें ऊर्जा व्यय नहीं होती है एवं वस्तु का बार-बार उपयोग किया जाता है, जैसे- काँच एवं प्लास्टिक के डिब्बों, बोतलों, आदि का बार-बार उपयोग किया जा सकता है।



संपोषित विकास की अवधारणा


विकास की इस प्रक्रिया का उद्देश्य प्राकृतिक तन्त्र तथा उसकी उत्पादकताओं को, लम्बे समय तक पर्यावरण को कोई हानि पहुँचाए बिना बनाए रखना है।


वर्तमान मानव पीढ़ी की आवश्यकताओं का विवेकपूर्ण उपयोग करते हुए आगामी पीढ़ियों की आवश्यकताओं के लिए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना ही संपोषित विकास की अवधारणा का मूल आधार है। आर्थिक विकास पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित है। अतः संपोषित विकास से जीवन के सभी आयाम में परिवर्तन निहित हैं।


प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन की आवश्यकता


हमें हमारे संसाधनों का सावधानीपूर्वक प्रबन्धन करना आवश्यक है, क्योंकि



1. पृथ्वी पर संसाधन सीमित है एवं मानव जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण, संसाधनों की माँग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।


2.प्राकृतिक संसाधनों का उचित प्रबन्धन दीर्घकालिक महत्त्व पर विचार करता है और अल्पकालिक लाभ के लिए उनके शोषण को पूर्णतया रोकता है, ताकि ये अगली पीढ़ी हेतु भी उपलब्ध हों।


3.संसाधनों का वितरण सभी वर्गों के लिए समान होना चाहिए, जिससे ये संसाधन सभी लोगों के विकास में लाभ दे सकें। 


4.संसाधनों के शोधन तथा उपयोग को नियन्त्रित कर पर्यावरण को क्षति से बचाया जा सकता है। संसाधनों के प्रबन्धन हेतु अपशिष्टों के सुरक्षित निपटान की व्यवस्था अनिवार्य है।


वन एवं वन्य जीवन


भू-भाग पर प्राकृतिक रूप से स्वतः ही उगने एवं वृद्धि करने वाले पादपों, वृक्षों एवं झाड़ियों के सघन आवरण को 'वन' कहते हैं। वनों की आर्थिक व पर्यावरणीय उपयोगिता के कारण ही इन्हें संसाधन माना जाता है तथा ये वन संसाधन कहलाते हैं।


वनों का संरक्षण आवश्यक है, क्योंकि 


1.वनों से ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है, जोकि समस्त जीवधारियों के लिए प्राण वायु है।


2. वनों से घरेलू उपयोग के लिए वस्तुएँ, जैसे-पशुओं के लिए चारा, ईंधन हेतु लकड़ी, फल व औषधियाँ प्राप्त होती हैं।


3.वनों से कागज, रबर, कत्था, माचिस, फर्नीचर, खेल उपकरण, तारपीन का तेल, आदि उद्योगों हेतु कच्चा माल उपलब्ध होता है। 


4.वन पर्यावरणीय संतुलन को स्थापित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं  ये पर्यावरण प्रदूषण को कम करते हैं तथा जैव-विविधता बनाए रखते हैं। 



5.वन बाद नियन्त्रण में भी सहायक होते हैं। ये बाढ़ के जल की तीव्रता को कम कर देते हैं।


6.वृक्षों की जड़ें मिट्टी के कणों को बाँधे रखती हैं, जिससे वर्षा के दौरान भू-क्षरण या मृदा अपरदन नहीं होता है।


स्टेकहोल्डर (दावेदार)


किसी परियोजना या इसके परिणाम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रूचि या सरोकार रखने वाला व्यक्ति, समूह या संगठन दावेदार या अधिकार पत्रधारी (Stakeholders) कहलाता है। ये सभी दावेदार एक समान नहीं होते हैं, वरन् उनकी भूमिकाएँ एवं आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न होती हैं।




हम सभी विभिन्न वन उत्पादों का उपयोग करते हैं, परन्तु वन संसाधनों पर हमारी निर्भरता में अन्तर होता है। वन संरक्षण से सम्बन्धित दावेदार निम्नलिखित हैं


(i) स्थानीय लोग वन के अन्दर एवं इसके निकट रहने वाले लोग अपने जीवनयापन की अनेक आवश्यकताओं के लिए वन उपज पर निर्भर रहते हैं। वे ईंधन, लकड़ी, खाद्य पदार्थ एवं मवेशियों के लिए चारा भी वन से प्राप्त

करते हैं।


(ii) वन विभाग सरकार का वन विभाग, जिनके पास वनों का स्वामित्व है। वे वनों से प्राप्त संसाधनों का नियन्त्रण एवं वन्य जीवों का संरक्षण करते हैं।


 (iii) उद्योग उद्योगपतियों का वन सम्पदाओं में मुख्य रूप से स्वार्थ निहित होता है। ये अपने उद्योगों या कारखानों के लिए वनों को केवल कच्चे माल (प्राय: लकड़ी) का स्रोत ही समझते हैं। उदाहरण टिंबर उद्योग, कागज निर्माण उद्योग, लाख उद्योग और खेल उपकरण निर्माण उद्योग।


(iv) प्रकृति तथा वन्यजीवों के समर्थक इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकृति प्रेमी एवं पर्यावरणविदों के समूह आते हैं, जो पर्यावरण सन्तुलन में वनों एवं वन्यजीवों के योगदान को समझते हैं तथा उनके संरक्षण में अपना योगदान देते हैं। इस प्रकार के संरक्षण प्रयासों में वन्यजीवों, जैसे-बाघ, शेर, गैंडा, हाथी, हिरण, आदि के संरक्षण को प्राथमिकता दी गई है। कुछ स्थानीय निवासी परम्परानुसार वनों के संरक्षण का प्रयास करते रहते हैं। जैसे- राजस्थान के विश्नोई समुदाय के लिए वन एवं वन्य प्राणी संरक्षण उनके धार्मिक अनुष्ठान के का भाग है। यह पुरस्कार अमृता देवी विश्नोई की स्मृति में दिया जाता है, जिन्होंने सन् 1731 में राजस्थान के जोधपुर के पास खेजरली गाँव में खेजड़ी के वृक्षों को बचाने हेतु 363 लोगों के साथ अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था। भारत सरकार ने हाल ही में वन्य जीव संरक्षण हेतु अमृता देवी राष्ट्रीय पुरस्कार देने की व्यवस्था की है।


संपोषित प्रबन्धन


प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को नियन्त्रित एवं नियमित करने वाला वह प्रक्रम या तन्त्र जो पर्यावरण को प्रभावित या असन्तुलित किए बिना संसाधनों की अगली पीढ़ियों हेतु सतत् उपलब्धता सुनिश्चित करता है, प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबन्धन कहलाता है।


जन सहभागिता


चिपको आंदोलन जल्द ही सभी समुदायों तथा मीडिया में फैल गया, जिससे सरकार को वनों की कटाई को रोकना पड़ा तथा उनको सोचने पर मजबूर होना पड़ा, कि वन उत्पादों के उपयोग में किन प्रमुख बिंदुओं को प्राथमिकता दी जाए। स्थानीय लोगों का मानना था कि वनों को नष्ट करने से केवल वन उत्पादों की उपलब्धता ही प्रभावित नहीं होती है, बल्कि मृदा की गुणवत्ता तथा जल के स्रोत भी प्रभावित होते हैं। वनों के प्रबन्धन में स्थानीय लोगों के भागीदारी की अति आवश्यकता होती है। पादपों को उगाकर वनों की पुनः प्राप्ति के लिए वन-वर्धन (Silviculture) नामक कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया, जो पारितन्त्र तथा उसके कार्यों में सन्तुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है। 



वन प्रबन्धन में लोगों की भागीदारी का उदाहरण


पश्चिम बंगाल वन विभाग (West Bengal Forest Department) ने सन् 1972 में, स्थानीय लोगों को शामिल करके नष्ट हो रहे साल वृक्षों के वनों को पुनर्जीवित करने के लिए एक असाधारण योजना को प्रतिपादित किया। इसका आरम्भ मिदनापुर जिले की अराबरी वन श्रृंखला (Arabari forest range) में किया गया था। इसके लिए वन अधिकारी ए. के. बनर्जी ने अत्यधिक नष्ट हो रहे साल के वन के 1272 हेक्टेयरों की सुरक्षा में वन के आस-पास के क्षेत्रों के ग्रामीणों को शामिल किया।


वन की सुरक्षा में सहायता के बदले में, ग्रामीणों को वन-वर्धन (Silviculture) तथा वन के कटाई कार्यों में रोजगार दिया गया था। इन्हें उपज का 25 प्रतिशत भाग भी दिया गया था तथा नाम मात्र के भुगतान पर वन-क्षेत्र से जलाऊ लकड़ी (ईंधन) और चारा इकट्ठा करने की अनुमति प्रदान की गई। वन के आस-पास रहने वाले स्थानीय लोगों के सक्रिय तथा स्वैच्छिक सहयोग से, अराबरी (Arabari) का नष्ट हो रहा साल-वन दस वर्षों के भीतर ही घना और हरा-भरा हो गया था। इस तरह स्थानीय लोगों के सहयोग से वनों के प्रभावी प्रबन्धन को बढ़ावा मिल सकता है।


वन्य जीव एवं इनका संरक्षण


वन वन्य जीवों को आश्रय प्रदान करते हैं, जिनका व्यापारिक लाभ के लिए अवैध शिकार किया जाता है। वन्य जीवों को उनकी त्वचा (चमड़े), दाँत, फर, पंख, शल्क, आदि के लिए मारा जा रहा है। इनका उपयोग अनेक उत्पादों के व्यापारिक उत्पादन में किया जाता है। इस कारण खाद्य श्रृंखलाएँ प्रभावित होती हैं तथा पारितन्त्र का पर्यावरणीय सन्तुलन बिगड़ जाता है।


वन्य जीवों के संरक्षण के उपाय


#. अवैध शिकार को दंडनीय अपराध बनाया जाना चाहिए।


#.वन-विभाग द्वारा वनों की निगरानी बढ़ा देनी चाहिए। संकटापन्न जातियों के संरक्षण के लिए विशेष उपाय किए जाने चाहिए।


#.राष्ट्रीय उद्यानों तथा अभ्यारण्यों की संख्या बढ़ाकर प्राकृतिक आवासों को संरक्षित करना चाहिए।


सभी के लिए जल


जल, स्थलीय एवं जलीय जीवों की मूल आवश्यकता है, जो कई प्रकार के जल स्रोतों, जैसे- समुद्र, नदियों, झीलों, तालाबों, आदि में पाया जाता है। वर्षा, जल का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है। समुद्र, पृथ्वी पर सबसे बड़े जल स्रोत हैं, लेकिन इनका जल उपयोगी नहीं होता है, क्योंकि इसका जल लवणीय होता है तथा इसको बिना शुद्धिकरण किए प्रयोग नहीं कर सकते हैं। भारत में वर्षा प्रमुखतया मानसून के दौरान होती है। इसका अर्थ है, कि वर्ष के कुछ महीने ही वर्षा होती है, जोकि जल स्रोतों को पुनः भरती है। 


हम जल स्रोतों का प्रबन्धन निम्न विधियों द्वारा करते हैं 


1.खेती तथा दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बाँध, कुण्ड तथा नहरों का उपयोग करके। 


2.बाँधों में संग्रहित जल का नियन्त्रित उपयोग किया जाता है।


जल संसाधनों का प्रबन्धन


1• खेती तथा दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बाँध, कुंड तथा नहरों का उपयोग करके।


2• बाँधों में संग्रहित जल का नियन्त्रित उपयोग किया जाता है।


3.अधिकतर फसल उत्पादन के तरीके जल की उपलब्धता पर आधारित हैं।


बाँध


नदियों के जल को रोककर रखने के लिए इन विशाल संरचनाओं का निर्माण किया जाता है। ये जल को अधिक मात्रा में संचित रखते हैं। इनमें संग्रहित जल का उपयोग विभिन्न कार्यों के लिए किया जाता है।


बाँधों के उद्देश्य एवं उपयोग


1.सिंचाई के लिए जल उपलब्ध करवाना 


2.विद्युत (जल-विद्युत) के उत्पादन में वर्षा ऋतु के दौरान आने वाले अत्यधिक बाढ़ को रोका जा सकता है।


3.वर्षा जल को बाँधों में जल संग्रहण करके


4.जिस स्थान पर जल की आवश्यकता है, नहर परियोजना द्वारा अधिक दूरी तक भी जल पहुँचाया जा सकता है, जैसे- इंदिरा गाँधी नहर ने राजस्थान के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्रों को हरा-भरा कर दिया है।


बड़े बाँध की आलोचना 


बड़े बाँध के विरोध में मुख्यतया तीन समस्याएँ होती हैं (i) सामाजिक समस्याएँ (Social problems) इससे बड़ी संख्या में किसान, स्थानीय लोग आदिवासी , विस्तावित होते हैं तथा उन्हें उचित मुवाबजा भी नहीं मिलता है


 (ii) आर्थिक समस्याएँ (Economic problems) इनमें बहुत अधिक राज्य धन लगता है और उस अनुपात में अपेक्षित लाभ प्राप्त नहीं होता है।



(iii) पर्यावरणीय समस्याएँ (Environmental problems) इससे बड़े स्तर पर वनों का विनाश होता है, जिससे स्थानीय जैव-विविधता की क्षति होती है। यह क्षेत्र को भूकम्प संवेदी भी बना देते हैं। उदाहरणस्वरूप नर्मदा नदी पर बनने वाले सरदार सरोवर बाँध की ऊँचाई बढ़ाने का विरोध करने के लिए, नर्मदा बचाओ आन्दोलन प्रारम्भ किया गया।


गंगा नदी पर टिहरी बाँध भी लोगों के विरोध का सामना कर रहा है।


जल-संग्रहण


जल संभर प्रबन्धन में मिट्टी एवं जल संरक्षण पर जोर दिया गया है, ताकि जैव-भार के उत्पादन में वृद्धि हो सके। पृथ्वी पर जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, परन्तु इसका वितरण असमान है। प्रायः भारत में वर्षा कुछ महीने ही गिरती है तथा उपलब्ध जल की गुणवत्ता भी कम होती है, इसलिए जल संरक्षण आवश्यक है। इसका मुख्य उद्देश्य भूमि एवं जल के प्राथमिक स्रोतों का विकास कर पादपों एवं जन्तुओं के द्वितीयक संसाधनों के उत्पादन में वृद्धि करना है, जिससे पारिस्थितिकी असन्तुलन उत्पन्न न हो।


जल संग्रहण की परम्परागत विधियाँ


भारत में, अधिकाधिक वर्षा जल जो भूमि पर गिरता है, को रोकने के लिए स्थानीय लोग अनेक जल एकत्रीकरण विधियों का उपयोग करते हैं।


ये विधियाँ निम्न प्रकार हैं 


#• छोटे गड्ढों तथा झीलों या तालाबों की खुदाई।


#• छोटे मृद-बाँधों का निर्माण या तटबन्धन करना।


#.बाँधों या नहरों का जल रोकने के लिए मिट्टी की लम्बी दीवारों का निर्माण करना।


#• बालू तथा चूना पत्थर द्वारा जलाशयों का निर्माण करना।


#• घरों की छतों के ऊपर जल संचयन इकाइयों की स्थापना करना।


परम्परागत जल संग्रहण तन्त्र


बड़े समतल भू-भाग में, जल संग्रहण स्थल मुख्यतया अर्धचन्द्राकार मिट्टी के गड्ढे या निचले ढलान वाले स्थानों पर, वर्षा ऋतु में जल प्रवाह के मार्ग में कंक्रीट या छोटे कंकड़ पत्थरों द्वारा एनीकट या चैक डैम (Check dams) बनाए जाते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य जल के भौम-स्तर में सुधार करना है, जो मानसून के दौरान भर जाते हैं तथा मानसून के बाद लगभग अगले छः महीने जल की आपूर्ति करते हैं।


कोयला और पेट्रोलियम


कोयला एवं पेट्रोलियम जीवाश्मीय ईंधन है, जो कार्बन के अतिरिक्त हाइड्रोजन, नाइट्रोजन व सल्फर के बने होते हैं। ये ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं।


 कोयला एक ठोस कार्बनिक ईंधन है, जो पृथ्वी के भूगर्भ में पाया जाता है।


पेट्रोलियम (पेट्रो = चट्टानें तथा ओलियम तेल) प्रकृति में तरल कार्बनिक रसायनों के रूप में पाया जाता है। यह अधिक मात्रा में पृथ्वी की सतहों के नीचे भूगर्भ में पाया जाता है।


कोयला और पेट्रोलियम का निर्माण


कोयला और पेट्रोलियम लाखों-करोड़ों वर्ष पहले पृथ्वी में गहराई में दबे पेड़-पादप और प्राणियों के जैव-भार के निम्नीकरण से बनते हैं। अतः ये क्षयशील संसाधन हैं।


उपयोग


कोयले का उपयोग ताप वैद्युत संयन्त्रों में बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जाता है, जबकि पेट्रोलियम उत्पादों, जैसे-पेट्रोल और डीजल का उपयोग स्कूटरों,

मोटर साइकिलों, कारों, बसों, ट्रकों, रेलगाड़ियों, जहाजों और वायुयानों को चलाने के लिए ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है।


कोयला तथा पेट्रोलियम द्वारा उत्पन्न प्रदूषण


कोयले एवं पेट्रोलियम का दहन करने पर कार्बन डाइऑक्साइड, जल, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, आदि उत्पन्न होते हैं अर्थात जीवाश्मीय ईंधन का दहन बढ़ने से वायुमण्डल में अत्यधिक मात्रा में प्रदूषक गैसे मुक्त होती हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग तथा अम्ल वर्षा उत्पन्न कर रही हैं। सल्फर एवं नाइट्रोजन ऑक्साइड अम्ल वर्षा का कारण बनते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड एक हरितगृह गैस है।



कोयला तथा पेट्रोलियम का संरक्षण


1.आवश्यकता न होने पर वैद्युत उपकरणों को बन्द कर देना चाहिए।


2.बिजली बचाने के लिए ऊर्जा दक्ष वैद्युत उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए।


3. सार्वजनिक परिवहन जैसे-बस, ट्रेन, आदि का उपयोग करना चाहिए।


4.लिफ्ट के स्थान पर सीढ़ियों का उपयोग करना चाहिए।


5.हीटर या सिगड़ी का प्रयोग करने के स्थान पर सर्दी में एक अतिरिक्त स्वेटर पहनना चाहिए। 


नोट सौर कुकर भोजन बनाने में प्रयुक्त गैस ईंधन का विकल्प है, जिसमें दालें, सब्जियाँ तथा चावल आसानी से पकाए जा सकते हैं, लेकिन इसके लिए सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति आवश्यक है।


प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन का दृश्यावलोकन प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबन्धन एक कठिन कार्य है। इस मामले में हमें सभी दावेदारों के हितों के बारे में सोचना चाहिए। कानून एवं नियमों से आगे हमें अपनी व्यक्तिगत और सामूहिक आवश्यकताओं को सीमित करना चाहिए एवं प्राकृतिक •संसाधनों का प्रबन्धन दीर्घकालिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए, ताकि विकास का लाभ वर्तमान एवं भो भावी पीढ़ियों को समान रूप से प्राप्त हो सके।




         बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1. निम्न में से कौन क्षयशील संसाधन नहीं है?


(a) पेट्रोल 


(b) जीवाश्म ईंधन


(c) वन


(d) सौर ऊर्जा 


उत्तर (d) सौर ऊर्जा क्षयशील नहीं है तथा किसी भी पारितन्त्र के लिए ऊर्जा का स्रोत है।


प्रश्न 2. निम्न में से कौन-सा क्षयशील संसाधन है?


(a) कोयला 


(b) जल


(C) सौर ऊर्जा


(d) पादप


 उत्तर (a) कोयला क्षयशील संसाधन है। यह सीमित मात्रा में उपस्थित है।


प्रश्न 3. गंगा को प्रदूषित करने वाले कारक हैं 


(a) कीटनाशक             (b) रसायन


(c) कचरा वाहित मल     (d) ये सभी


उतर (d) ये सभी विकल्प गंगा को प्रदूषित करने वाले कारक है।


प्रश्न 4. अमृता देवी विश्नोई हैं


(a) वन संरक्षक


(b) जलीय जन्तु संरक्षक 


(c) सामाजिक कार्यकर्ता


(d) उपरोक्त में से कोई नहीं


उत्तर (a) अमृता देवी विश्नोई वन संरक्षक है। उन्होंने 1731 में वनों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी।


प्रश्न 5. वे तीन 'R' कौन-से हैं, जो प्राकृतिक संसाधनों को लम्बी अवधि तक संरक्षित बनाए रखने में सहायक होंगे? 


(a) पुनः चक्रण, पुनरुत्पादन, पुन: उपयोग 


(b) कम उपयोग, पुनरुत्पादन, पुनः उपयोग


(c) कम उपयोग, पुनः उपयोग, पुनः वितरण


(d) कम उपयोग, पुनः चक्रण, पुन: उपयोग


उत्तर (d) प्राकृतिक संसाधनों को लम्बी अवधि तक संरक्षित बनाए रखने के लिए '3R' पद्धति का उपयोग किया जाता है। ये 3R; कम उपयोग पुनः चक्रण, पुन: उपयोग है।


प्रश्न 6. भौम-जल क्या है?


(a) जलाशय का जल


(C) भूमि के नीचे संचित जल


(b) वर्षा का जल 


(d) इनमें से कोई नहीं


उत्तर (b) वर्षा का जल भूमि के नीचे एक जल स्तर बनाता है, जिसे भौम-जल कहते हैं।


अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक



प्रश्न 1. वन संरक्षण क्यों आवश्यक है? अथना हमें वन एवं वन्य-जीवन का संरक्षण क्यों करना चाहिए?


उत्तर हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण इसलिए करना चाहिए, क्योंकि वन देश की बहुमूल्य सम्पदा है तथा ये प्रकृति के नव्यकरणीय स्रोत हैं।


ये निम्न प्रकार से मनुष्य के लिए आवश्यक हैं।


(i) इमारती लकड़ी वनों से मकानों के लिए इमारती लकड़ी प्राप्त होती हैं, जो फर्नीचर, खिड़कियाँ, आदि बनाने के काम आती है।


(ii) ईंधन विकासशील देशों में 150 करोड़ से भी अधिक व्यक्तियों को खाना पकाने के लिए ईंधन की आवश्यकता होती है, जो उन्हें लकड़ी से प्राप्त होता है।


(iii) कागज लकड़ी व बाँस का अखबार व उच्चकोटि के कागज को बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।


(iv) भोजन आदिवासी लोग वनों से प्राप्त पत्तियों तथा फलों के लिए वनों पर निर्भर रहते हैं।


(v) अन्य वन उत्पाद वनों से तेल, कपूर, गोद, औषधियाँ, विष, फल, शिकाकाई, मोम, आदि व्यवसायिक महत्व के उत्पाद भी प्राप्त होते हैं। 


प्रश्न 2. वन उत्पादों पर आधारित उद्योगों के नाम बताइए।


 उत्तर फर्नीचर, कागज, लाख तथा खेल उपकरण, निर्माण उद्योग, आदि वन उत्पादों पर आधारित है।



प्रश्न 3. अमृता देवी विश्नोई ने अपने जीवन का बलिदान क्यों और कौन-से वर्ष में दिया था ?


उत्तर सन् 1781 में राजस्थान में जोधपुर के पास खेजरली गाँव में 'खेजड़ी वृक्षों" को बचाने हेतु अमृता देवी विश्नोई ने वहाँ के 363 लोगों के साथ अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था।



 प्रश्न 4. वन्य प्राणियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


उत्तर वन वन्य जीवों को आश्रय प्रदान करते है, जिनका व्यापारिक लाभ के लिए अवैध शिकार किया जाता है।


वन्य जीवों को उनकी त्वचा (चमड़े), दाँत, फर, पंख, शल्क, आदि के लिए मारा जा रहा है। इनका उपयोग अनेक उत्पादों के व्यापारिक उत्पादन में किया जाता है। इस कारण खाद्य श्रृंखलाएँ प्रभावित होती हैं तथा पारितन्त्र का पर्यावरणीय सन्तुलन बिगड़ जाता है।




प्रश्न 5. जैव-विविधता की हानि से हम किसका सामना करेंगे? कारण बताइए।


उत्तर जैव-विविधता की हानि से हम पारिस्थितिकीय संकट का सामना करेंगे। इससे खाद्य श्रृंखला एवं खाद्य जाल अव्यवस्थित हो जाएंगे तथा भावी पीढ़ी के लिए ये संसाधन उपलब्ध नहीं हो सकेंगे।



प्रश्न 6. जल संरक्षण क्या है? विस्तारपूर्वक समझाइए ।


उत्तर जल संरक्षण या संग्रहण का अर्थ वह स्थानीय क्षेत्र, जहाँ वर्षा का जल भूमि पर गिरता है या प्रवाहित होता है, में जल का संग्रहण करना है। राजस्थान की परम्परागत जल संग्रह पद्धति खादिन है। जल को संग्रहित करके सिंचाई तथा भूमि का जल स्तर बढ़ाने हेतु प्रयोग किया जाता है तथा रोजमर्रा की जल आवश्यकताओं को पूर्ण करने में किया जाता है।



प्रश्न 7. प्रदूषण क्या है? इसके विभिन्न प्रकारों के नाम लिखिए। 


उत्तर पर्यावरण में उपस्थित व अवांछित या हानिकारक तत्व, जो सजीवों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दुष्प्रभाव डालते हैं, प्रदूषक कहलाते हैं तथा पर्यावरण में इन प्रदूषकों के कारण उत्पन्न दुष्परिणामों को प्रदूषण कहते हैं। प्रदूषण के विभिन्न प्रकार जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण है।



प्रश्न 8. पृथ्वी पर समुद्र जैसे बड़े जल स्रोत उपस्थित हैं, फिर भी जल की कमी है। समझाइए। 


उत्तर समुद्र, पृथ्वी पर सबसे बड़े जल स्रोत है, लेकिन इनका जल उपयोगी नहीं होता है, क्योंकि इसका जल लवणीय होता है तथा इसका बिना शुद्धिकरण किए प्रयोग नहीं कर सकते हैं।



प्रश्न 9. बाँधों के दो महत्त्वपूर्ण लाभ बताइए।


उत्तर (i) सिचाई हेतु जल उपलब्ध करवाना। 


(ii) बिजली उत्पादन में। 


प्रश्न 10. ऐसे दो बाँधों के नाम बताइए, जो लोगों के विरोध का सामना कर रहे हैं।



उत्तर (i) गंगा नदी पर टिहरी बाँध


(ii) नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बाँधा


 प्रश्न 11. जल की गुणवत्ता के स्तर को मापने के लिए हम कौन से मानक उपयोग में लाते हैं?


उत्तर जल का pH (यूनिवर्सल इंडिकेटर का प्रयोग करके किया जाता है), चालकता, BOD तथा जैविक जाँच, आदि उपयोग में लाते है। 


प्रश्न 12. आपके द्वारा सुझाए गए जल संसाधनों के उचित प्रबन्धन के कोई दो उपाय बताइए।


उत्तर जल संसाधन के उचित प्रबन्धन के दो उपाय निम्न है


 (i) वर्षाजल का संरक्षण


(ii) बाँधों का निर्माण



प्रश्न 13. खनन द्वारा प्रदूषण कैसे उत्पन्न होता है?


उत्तर खनन द्वारा प्रदूषण उत्पन्न होता है, क्योंकि खनन के दौरान प्रति टन धातु निष्कर्षण में अत्यधिक मात्रा में स्लज (धातु ऑक्साइड तथा सिलिकॉन डाइऑक्साइड के द्वारा निकाले सह-उत्पाद) बनती है, जो जल एवं मृदा प्रदूषण का कारण बनती है।


प्रश्न 14. हालाँकि कोयला और पेट्रोलियम जैव-संहति के अपघटन से उत्पन्न होते हैं, फिर भी हमें उनके संरक्षण करने की आवश्यकता है। क्यों?


उत्तर कोयला और पेट्रोलियम जैव-संहति के अपघटन से उत्पन्न होते हैं। हजारों साल पहले ये स्रोत अधिक मात्रा में पाए जाते थे, परन्तु भविष्य में सावधानीपूर्वक प्रयोग न करने के कारण इनका उपलब्ध होना असम्भव है। हम जानते हैं कि पृथ्वी पर उपस्थित इनके भंडारण क्षेत्रों की क्षमता एवं वर्तमान खपत या मांग के अनुसार हम पेट्रोलियम लगभग अगले 40 सालों और कोयला लगभग अगले 200 सालों तक उपयोग में ला सकते हैं।




प्रश्न 15. हमें ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की आवश्यकता क्यों है?


उत्तर हमारे प्रमुख संसाधन सीमित मात्रा में उपलब्ध है, बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए संसाधनों की मांग कई गुना तीव्रता से बढ़ रही है, इसलिए हमे भावी पीढ़ों के लिए संसाधनों को संरक्षित करने के लिए ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों को आवश्यकता है।



         लघु उत्तरीय प्रश्न 4 अंक


प्रश्न 1. अक्षय संसाधनों तथा क्षयशील संसाधनों में विभेद कीजिए। उत्तर अक्षय तथा क्षयशील संसाधन के निम्नलिखित अन्तर हैं




अक्षय संसाधन

क्षयशील संसाधन

ये स्वतः ही एक निश्चित समय में  स्वयं को पुनः निर्मित कर लेते हैं।

ये एक बार उपयोग में आने के बाद पुनः नवीनीकृत नहीं किए जा सकते हैं।


ये पुनः नव्यकरणीय और पुनः भरणीय संसाधन है

ये पुनः नव्यकरणीय और पुनः मरणीय संसाधन नहीं हैं।

इनको संरक्षण की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि यह स्वतः ही पुनः निर्मित हो जाते हैं। उदाहरण सूर्य का

प्रकाश, जल, आदि।


भविष्य में उपयोग करने के लिए इनके संरक्षण के लिए विभिन्न कदम उठाने की आवश्यकता होती है। उदाहरण लोहा, कोयला आदि

ये असीमित मात्रा में उपलब्ध है।

ये सीमित मात्रा में उपलब्ध है।




प्रश्न 2. पदार्थों का पुनः उपयोग, पुनः चक्रण से बेहतर है। इस कथन का औचित्य सिद्ध कीजिए।


उत्तर पुन: उपयोग तीन R पद्धति में से सबसे बेहतर है, जो पर्यावरण संरक्षण में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, क्योंकि


(i) पदार्थों के पुनः उपयोग में ऊर्जा की खपत नहीं होती है। 


(ii) ये पर्यावरण प्रदूषण को कम करता है।


(iii) वस्तुओं का बार-बार प्रयोग करना उसे अधिक उपयोगी बनाता उनकी गुणवत्ता के सुधार को प्रेरित करता है।




प्रश्न 3. निम्नलिखित से सम्बन्धित ऐसे पाँच कार्य लिखिए, जो आपने किए हैं 


(i) अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण।


(ii) अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को और बढ़ाया है। 


उत्तर (i) अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण


हमने प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए निम्नलिखित कार्य किए हैं 


(a) पर्यावरण को सुरक्षित करने के लिए, कूड़ा-करकट एक सुनिश्चित स्थान पर एकत्रित किया है।


(b) जल संरक्षण के लिए, जल के अनावश्यक उपयोग को रोका है;


जैसे-अपने दैनिक कार्य के पश्चात् जल की टोंटी को बंद करना तथा एकत्रित जल को पौधों में डालना।


(c) विद्युत को बचाने के लिए आवश्यकता न होने पर आस-पास के स्थानों के पंखे, बल्ब, स्विच को बंद करना।


(d) पेट्रोलियम एवं कोयला संसाधन को संरक्षित करने के लिए, पैदल चलना अथवा साइकिल एवं सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना।


 (e) सर्दियों में अतिरिक्त स्वेटर पहनना, जिससे हीटर या सिगड़ी का प्रयोग न करना पड़े।


(ii) अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को और बढ़ाया है



प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को निम्न कार्य से बढ़ाया है 


 (a) लिफ्ट का प्रयोग किया, जिससे विद्युत की अधिक खपत हुई है। 


(b) अधिकतर कार्यों के लिए आधुनिक मशीनों का उपयोग किया, जिससे कोयला एवं पेट्रोलियम संसाधन पर दबाव बढ़ा है। 


(c) प्लास्टिक की थैली के उपयोग से पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है,जिसका हम अपनी जीवन शैली में उपयोग करते हैं। 


(d) कागज, काँच, धातु की वस्तुओं को फेंक देना, जबकि इनको सुनिश्चित से पुनः चक्रण के बाद पुनः उपयोग में लाया जा सकता है।


(e) कम उपयोग में आने वाली लकड़ी को फेंक देना, जोकि ईंधन के रूप में प्रयोग में लाई जा सकती है।



प्रश्न 4. वनों के संरक्षण में सहायक चार दावेदारों के नाम बताइए।


उत्तर वन संरक्षण से सम्बन्धित दावेदार


(i) स्थानीय लोग वन के अन्दर एवं इसके निकट रहने वाले लोग अपने जीवनयापन की अनेक आवश्यकताओं के लिए वन उपज पर निर्भर रहते हैं। वे ईंधन, लकड़ी, खाद्य पदार्थ एवं मवेशियों के लिए चारा भी वन से प्राप्त करते हैं।


(ii) वन विभाग सरकार या वन विभाग स्वामित्व है। वे वनों से प्राप्त संसाधनों का नियन्त्रण एवं वन्य जीवों का संरक्षण करते हैं। 


(iii) उद्योग उद्योगपतियों का वन सम्पदाओं में मुख्य रूप से स्वार्थ निहित होता है। वे अपने उद्योगों या कारखानों के लिए वनों को केवल कच्चे माल (प्राय: लकड़ी) का स्रोत ही समझते हैं। उदाहरण टिंबर उद्योग, कागज निर्माण उद्योग, लाख उद्योग और खेल उपकरण निर्माण उद्योग।


(iv) प्रकृति तथा वन्यजीवों के समर्थक इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकृति प्रेमी एवं पर्यावरणविदों के समूह आते हैं, जो पर्यावरण सन्तुलन में वनों एवं वन्यजीवों के योगदान को समझते हैं तथा उनके संरक्षण में अपना योगदान देते हैं। इस प्रकार के संरक्षण प्रयासों में वन्यजीवों, जैसे-बाघ, शेर, गेंडा, हाथी, हिरण, आदि के सरंक्षण को प्राथमिकता दी गई है। 


कुछ स्थानीय निवासी परम्परानुसार वनों के संरक्षण का प्रयास करते रहते हैं।


प्रश्न 5. 'संपोषित विकास' की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।


उत्तर विकास की इस प्रक्रिया में रतन्त्र तथा उसकी उत्पादकताओं को बिना कोई हानि पहुँचाए प्राकृतिक संसाधना का विवेकपूर्ण उपयोग करना सम्मिलित है। वह विकास जो सामयिक या वर्तमान मानव पीढ़ी की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करता है तथा भावी पीढ़ियों को आवश्यकताओं के लिए संसाधनों को संचित रखता है, संपोषित विकास कहलाता है।


प्रश्न 6. इस अध्याय में हमने देखा कि जब हम वन एवं वन्य जन्तुओं की बात करते हैं, तो चार मुख्य दावेदार सामने आते हैं। इनमें से किसे उत्पाद प्रबन्धन हेतु निर्णय लेने के अधिकार दिए जा सकते हैं? आप ऐसा क्यों सोचते हैं?



उत्तर वन एवं वन्य जन्तुओं के लिए मुख्य दावेदार वहाँ के स्थानीय निवासी उद्योगपति, वन्य जीवन एवं प्रकृति प्रेमी तथा राजकीय संस्था है। राजकीय संस्था को वन उत्पाद प्रबन्धन हेतु निर्णय लेने के अधिकार दिए जा सकते हैं, क्योंकि राजकीय संस्था के द्वारा निष्पक्ष रूप से वहाँ के मूल निवासियों को रोजगार: जैसे—पानी का छिड़काव, वनों की सफाई, आदि एवं कुछ उत्पादों जैसे-ईंधन हेतु लकड़ी लेने की अनुमति दी जा सकती है।




प्रश्न 7. जल संभर प्रबन्धन द्वारा सही प्रबन्धन के चार लाभों की सूची बनाइए।


उत्तर 


(i) जल संभर प्रबन्धन में मिट्टी एवं जल संरक्षण पर जोर दिया गया है, जिससे जैव-भार उत्पादन में वृद्धि हो सके।


(ii) इसका मुख्य उद्देश्य भूमि एवं जल के प्राथमिक स्रोतों का विकास करना है। 


(iii) द्वितीयक संसाधन पादपों एवं जन्तुओं का इस तरह से उत्पादन करना है, कि इससे पारिस्थितिक असन्तुलन उत्पन्न न हो।


(iv) जल संभर प्रबन्धन, जल संभर समुदाय का उत्पादन एवं आय बढ़ाता है और सूखे एवं बाढ़ को भी कम करता है।




प्रश्न 8. संसाधनों के दोहन के लिए कम अवधि के उद्देश्य की परियोजना के क्या लाभ हो सकते हैं? यह लाभ लम्बी अवधि को ध्यान में रखकर बनाई गई, परियोजना के लाभ से किस प्रकार भिन्न हैं?


उत्तर कम अवधि के उद्देश्य की परियोजना से कम खर्च, कम समय व कम प्रयास से अधिक प्रत्यक्ष लाभ दिखाई देंगे। इनमें से एक गंगा सफाई योजना है। इसके अंतर्गत जब गंगा की सफाई कराई गई, तो उसमें कोलीफॉर्म पाया गया, जो जीवाणु का एक वर्ग है। यह जीवाणु मनुष्य की आँत में पाया जाता है, जो जल में उपस्थित रहता है। अतः यह जल के द्वारा मनुष्य की आंत में जाता है एवं जल-जनित रोग उत्पन्न करता है। अतः इस तरह की परियोजना से इस जीवाणु को नष्ट करके मनुष्य को रोगमुक्त किया गया। 



कम उद्देश्य वाली परियोजना के लाभ लम्बी अवधि की परियोजना से निम्न प्रकार से भिन्न हैं




कम अवधि उददेश्य वाली परियोजना

लम्बी अवधि वाली परियोजना

कम अवधि उद्देश्य वाली परियोजना के लिए बजट व व्यय कम होता है।

लम्बी अवधि वाली परियोजना के लिए व्यय तथा बजट ज्यादा होता है।

कम अवधि उद्देश्य वाली परियोजना को हम शीघ्रता से या कम समय में पूरा कर सकते हैं

इस तरह की परियोजना में एक, दो या अधिक वर्ष लग सकते हैं

इस तरह की परियोजना से दीर्घकालीन लाभ नहीं हो सकते

इस तरह की परियोजना से दीर्घकालीन लाभ होते हैं।




प्रश्न 9. वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को नियन्त्रित करने के कुछ उपायों को सुझाइए।



उत्तर वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को नियन्त्रित करने के लिए निम्न उपाए किए जा सकते हैं


(i) पेट्रोलियम पदार्थों का उपयोग कम करना चाहिए। व्यक्तिगत परिवहन साधनों की अपेक्षा सार्वजनिक परिव साधनों का उपयोग करके पेट्रोल खपत कम की जा सकती हैं।


(ii) डीजल तथा पेट्रोल के स्थान पर CNG का उपयोग करें।


(iii) थर्मल पावर स्टेशन व उद्योगों से निकले प्रदूषित धुएँ को वायुमण्डल में छोड़ने से पहले धुएँ में से हानिकारक गैसों एवं कणों को दूर करना चाहिए।


 (iv) अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए।


 (v) ठोस अपशिष्टों को जलाने की जगह लैण्डफिल में दबा होना चाहिए।


प्रश्न 10. अकेले व्यक्ति के रूप में आप विभिन्न प्राकृतिक उत्पादों की खपत कम करने के लिए क्या कर सकते हैं?


अथवा


 इस अध्याय में उठाई गई समस्याओं के आधार पर आप अपनी जीवन-शैली में क्या परिवर्तन लाना चाहेंगे, जिससे हमारे संसाधनों के संपोषण को प्रोत्साहन मिल सके?



 उत्तर हमारे संसाधनों के संपोषण को प्रोत्साहन मिल सके, इसलिए हम अपनी जीवन-शैली में निम्नलिखित परिवर्तन लाना चाहेगे


(i) हम विद्युत संसाधन को बचाने के लिए अपने आस-पास की वस्तुओं को अनावश्यक उपयोग में नहीं लाएँगे; जैसे- आवश्यकता न होने पर कमरे में पंखे या बल्ब को बंद कर देना चाहिए। 


(ii) हमें जल संसाधन के संरक्षण द्वारा यह सुनिश्चित करना चाहिए, कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो, जैसे अनावश्यक जल प्रवाह को रोकना, वर्षा जल को एक स्थान पर एकत्रित

करना, आदि।


(iii) हम पर्यावरण को स्वच्छ रखेंगे। उदाहरण कूड़ा-करकट को एक सुनिश्चित स्थान पर फेकेंगे और स्वच्छ वायु के लिए अपने आस-पास के स्थानों पर पादप लगाएँगे।


 (iv) हम स्वयं जनता को वृक्षारोपण के लिए जागरुक करेंगे एवं स्वयं भी वृक्ष लगाएँगे तथा उनका संरक्षण करेंगे।


(v) हम परम्परागत ऊर्जा संसाधनों (जैसे- कोयला, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस) के स्थान पर अपरम्परागत संसाधनों (जैसे-सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा) का प्रयोग करेंगे।


प्रश्न 11. अकेले व्यक्ति के रूप में आप निम्न के प्रबन्धन में क्या योगदान दें सकते हैं? 


(i) वन एवं वन्य जन्तु


 (ii) जल संसाधन


 (iii) कोयला एवं पेट्रोलियम



उत्तर (i) अकेले व्यक्ति के रूप में हम वन एवं वन्य जंतु के प्रबंधन में योगदान निम्न प्रकार से दे सकते हैं 



(a) वनों की सफाई करके एवं कटाई को रोककर ।


(b) वन्य जंतुओं के खाने-पीने की व्यवस्था एवं सुरक्षा में योगदान दे कर


(ii) जल संसाधन के लिए हम अकेले निम्न प्रयास कर सकते हैं।


 (a) जल का अनुचित प्रयोग रोकना।


(b) वर्षा जल संग्रहण।


(c) अवशिष्टों को साफ जल में डालने से रोककर ।


 (iii) कोयला एवं पेट्रोलियम के संरक्षण के लिए हम अकेले निम्न उपाय कर सकते हैं


(a) कोयला एवं पेट्रोलियम चलित वाहनों की जगह साइकिल का उपयोग करके। 


(b) ऊर्जा के लिए कोयला एवं पेट्रोलियम की जगह अवशिष्ट कार्बनिक पदार्थों का उपयोग करके। 


प्रश्न 12. अपशिष्ट जल का उपयोग करने की कुछ लाभकारी विधियों का सुझाव दीजिए। 


उत्तर (i) भौम जलस्तर को बढ़ाया जा सकता है क्योंकि मृदा से जल छनकर गहराई में जाता है, जिससे प्राकृतिक रूप से अपशिष्ट जल का उपचार

हो जाता है।


(ii) फसल की सिंचाई में उपयोग हो सकता है।


(iii) उद्यानों, पौधों व वनों की जल आपूर्ति में प्रयोग हो सकता है।


 (iv) वाहनों की धुलाई में उपयोग हो सकता है।


(v) यह अपशिष्ट जल फसलों में कई आवश्यक तत्वों की आपूर्ति कर देता है।


           विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 7 अंक


प्रश्न 1. संसाधनों के प्रबन्धन से आप क्या समझते हैं? इनके द्वारा आप अपने समाज को कैसे लाभान्वित करेंगे? एक संक्षिप्त लेख द्वारा समझाइए।


उत्तर प्राकृतिक संसाधनों का प्रबन्धन पृथ्वी की संपदाएँ या संसाधन सीमित मात्रा मे उपलब्ध हैं। मानव जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण, संपदाओं या संसाधनों के लिए माँग दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। अतः इनका उचित प्रबन्धन सुनिश्चित करता है, कि प्राकृतिक संपदाओं का विवेकपूर्वक उपयोग किया जाए, ताकि वे वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करें और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बनी रहे। यह प्राकृतिक संपदाओं का उचित वितरण सुनिश्चित करता है, कि इन संपदाओं के वितरण से सभी लोगों को लाभ हो। वर्तमान में प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग एवं उनके द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट के उत्पादन को कम करने हेतु 3R पद्धति, का उपयोग किया जाता है। तीन R अर्थात् Reduce (कम उपयोग करना ), Recycle (पुन: चक्रण) तथा Reuse (पुन: उपयोग करना) । 


संसाधनों का प्रबन्धन कर हम समाज को कई आयामों में लाभान्वित करेगे



(i) समाज को स्वच्छ वातावरण उपलब्ध होगा। स्वच्छ वातावरण में श्वास लेने पर श्वास सम्बन्धी रोगों की रोकथाम होगी। 


(ii) वनों के संरक्षण से मनुष्यों व जीवों को वन सम्पदा का लाभ निरन्तर मिलता रहेगा।


(iii) वन पारितन्त्र संरक्षित होगा, जिससे वातावरण भी सन्तुलित रहेगा।



(iv) ऊर्जा की खपत कम होगी, जो हमारी भावी पीढ़ियों को उपलब्ध होगी। 


(v) जल आपूर्ति सुनिश्चित होगी।


(vi) रोगों के फैलने की सम्भावना बहुत कम हो जाएगी। 


(vii) मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति पूर्ण रूप से हो पाएगी।


(vii) वन्य जीव संरक्षण खाद्य-श्रृंखला में सन्तुलन बना रहेगा।


अतः इस प्रकार प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन से समाज लाभान्वित होगा। 


प्रश्न 2. मानव के लिए वनों का प्रत्यक्ष मूल्य क्या है?


अथना एक संसाधन के रूप में वन का क्या महत्व है? 


उत्तर वन, लोगों और उद्योगों को कच्चा माल एवं पारिस्थितिकी सेवाएँ उपलब्ध कराकर देश के आर्थिक विकास में योगदान देते हैं। ये हमारी संस्कृति और सभ्यता के साथ भी अच्छी तरह से जुड़े हुए है।


वन निम्नलिखित कारणों से मानव के लिए उपयोगी हैं


(i) वनों से ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है, जोकि समस्त जीवधारियों के प्राण वायु है।



(ii) वनों से घरेलू उपयोग के लिए वस्तुएँ: जैसे-पशुओं के लिए चारा, ईंधन हेतु लकड़ी, फल व औषधियाँ प्राप्त होती है। 


(iii) वन पेपर उद्योग, प्लाईवुड उद्योग, आदि के लिए कच्चा माल उपलब्ध करते है


(iv) वनों में बाँस का उत्पादन होता है, जिसे गरीब व्यक्ति की लकड़ी कहा जाता है। औद्योगिक रूप से बॉस को कागज और रेयॉन उद्योग में करचें माल के रूप में उपयोग किया जाता है।


(v) ये विभिन्न पशु उत्पाद, जैसे- कस्तूरी, शहद, मोम, मूंगा व रेशम, आदि भी प्रदान करते हैं।


(vi) वनों से कागज, रबर, कत्था, माचिस, फर्नीचर, खेल उपकरण, तारपीन का तेल, आदि उद्योगों हेतु कच्चा माल उपलब्ध होता है।


(vii) वन पर्यावरणीय संतुलन को स्थापित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये पर्यावरण प्रदूषण को कम करते हैं तथा जैव-विविधता बनाए रखते हैं।


 (viii) वन बाढ़ नियन्त्रण में भी सहायक होते हैं। ये बाढ़ के जल की तीव्रता को

कम कर देते हैं। 


(ix) वृक्षों की जड़े मिट्टी के कणों को बाँधे रखती है, जिससे वर्षा के दौरान भू-क्षरण या मृदा अपरदन नहीं होता है। 


(x) वन वर्षा को आकर्षित करते हैं, जिससे पारितन्त्र में जल चक्र के द्वारा जल की पर्याप्तता सुनिश्चित होती है।


(xi) वनों के निकट की भूमि उपजाऊ होती है। इसका कारण पादपों की पत्तियाँ व घास-फूस का सड़-गलकर प्राकृतिक खाद (धूमस) का निर्माण करना है। मिट्टी में जीवाश्म मिलने से उसकी उर्वरता शक्ति बढ़ जाती है। 


प्रश्न 3. वन सम्पदा हमारे लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसका संरक्षण कैसे किया जा सकता है? एक लेख लिखिए।



उत्तर 



वन सम्पदा का संरक्षण



(i) वृक्षारोपण करना चाहिए।


 (ii) वन्य जीवों के शिकार पर पूर्ण रूप से प्रतिबन्ध लगना चाहिए।


(iii) वन सम्पदा के अनियमित दोहन पर रोक लगनी चाहिए।


 (iv) वन्य जीवों के अंगों को तस्करी व व्यापार पर पूर्ण लगाकर सम्पदा को संरक्षित किया जा सकता है।


(v) वनों पर ईंधन के लिए लकड़ी की मांग के दबाव को कम करने के लिए। बायोगैस के प्रयोग को प्रोत्साहन देना चाहिए।


(vi) एक स्थान से जितने वृक्ष काटे जाते हैं, उसी स्थान पर उससे अधिक या कम से कम उतने ही पादप लगा दिए जाने चाहिए।


(vii) वृक्षों के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद, उर्वरकों, सिंचाई प्रबन्ध व अच्छी किस्म के वृक्षों के लिए ऊतक संवर्धन तकनीक का प्रयोग करना चाहिए।


 (viii) नगरों में सड़कों के किनारे पर, सार्वजनिक पार्क व घरों में सजावटी व फल वाले वृक्ष लगाने चाहिए। 


(ix) विनाशकारी प्रभाव डालने वाले पर्यावरणीय कारकों का निवारण करना चाहिए; जैसे-तूफान, बाढ़, आदि।


प्रश्न 4. प्रदूषण क्या है? गंगा का प्रदूषण आज भी भीषण समस्या है। इसको रोकने के लिए क्या-क्या विधियाँ अपनाई जानी चाहिए? एक लेख लिखिए। 




उत्तर वायु, जल तथा भूमि में अवांछित अत्यधिक पदार्थों का एकत्रित हो जाना अथवा पदार्थों की मात्रा में अवांछनीय परिवर्तन होना, जिससे प्राकृतिक पर्यावरण प्रभावित होता है, प्रदूषण कहलाता है। प्रदूषण के कारण कई जल स्रोत पूर्ण रूप से प्रदूषित हो चुके हैं, जिसका प्रमुख उदाहरण गंगा प्रदूषण है।



गंगा को प्रदूषित होने से रोकने के लिए निम्न विधियाँ अपनाई जानी चाहिए


(i) वाहितमल उपचार संयंत्र गंगा में लगाने चाहिए। 


(ii) फैक्ट्रियों से होने वाले प्रदूषित जल को गंगा में प्रवाहित करने से पहले उसका उपचार किया जाना चाहिए, ताकि प्रदूषण कम-से-कम मात्रा में हो।


(iii) ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए क्योंकि गंगा किनारे खेतों में कीटनाशकों का प्रयोग अत्यधिक होता है, जो बहकर सीधे गंगा में जाता है।


(iv) गंगा को निर्मल रखने के लिए देश की कृषि, उद्योग, शहरी विकास तथा पर्यावरण सम्बन्धी नीतियों में मूलभूत परिवर्तन किए जाने चाहिए। 


(v) नदियों को प्रदूषणमुक्त रखने के लिए इन रासायनिक खादो तथा कीटनाशकों पर दी जाने वाली भारी सब्सिडी को बन्द करके पूरी राशि जैविक खाद तथा कीटनाशकों का प्रयोग करने वाले किसानों को ही जानी चाहिए और रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों पर पूर्ण रोक लगानी चाहिए।


(vi) तटों के किनारे औद्योगिकरण कम हो। उद्योग सम्बन्धित क्षेत्र की जल सप्लाई व्यवस्था से ही पानी लें। खुद का वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट होना चाहिए। 


(vi) नदियों पर बड़े बाँधों की बजाय छोटे-छोटे बाँध बनाए जाएँ। इनकी अधिकतम ऊँचाई 5 मीटर होनी चाहिए। इससे नदी का प्रवाह लगातार बना रहेगा और पानी एक ही जगह इकट्ठा नहीं होगा। भूस्खलन का खतरा भी इससे कम होगा। 


(viii) बैराजों में 30 फीसदी से अधिक पानी नहीं होना चाहिए। यदि बैराज में अधिक पानी हुआ तो नदी में पानी प्रवाह घटेगा और प्रदूषण बढ़ेगा। 


(ix) शवों को रोकने के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम में गंगा तट के नगरों में 100% विद्युत शवदाह गृह बनाने की योजना है, उसका क्रियान्वयन शीघ्र होना चाहिए।




प्रश्न 5. जल संग्रहण क्या है? इसको किस प्रकार से उपयोग में लाकर मनुष्य को, जन्तुओं को तथा वनस्पतियों को लाभ पहुँचा सकते हैं? 


उत्तर जल संग्रहण इसका अर्थ है, स्थानीय क्षेत्र जहाँ वर्षा जल भूमि पर गिरता है या प्रवाहित होता है, में जल का संग्रहण करना। भारत में, अधिकाधिक वर्षा जल जो भूमि पर गिरता है, को रोकने के लिए स्थानीय लोगों द्वारा अनेक जल एकत्रिकरण विधियों का उपयोग किया जाता है।


ये विधियाँ निम्न प्रकार हैं


(i) छोटे गड्ढों तथा झीलों या तालाबों की खुदाई।


 (ii) छोटे मृद-बाँधो का निर्माण या तटबंधन करना।


(iii) बाँधों या नहरों का जल रोकने के लिए मिट्टी की लम्बी दीवारों का निर्माण करना।


(iv) बालू तथा चूना पत्थर द्वारा जलाशयों का निर्माण करना। 


(v) घरों की छतों के ऊपर जल संचयन इकाइयों की स्थापना करना।


इस प्रकार जल संग्रहण से भौम-जल स्तर बढ़ता है।



#. यह भूमि में संग्रहित जल, कुओं को भरने के लिए फैल जाता है और विशाल क्षेत्र में फसलों के लिए नमी उपलब्ध कराता है। भूमि में संग्रहित जल, मच्छरों के प्रजनन को नहीं बढ़ाता है।


#.भूमि में संग्रहित जल मानव तथा जन्तु अपशिष्टों द्वारा प्रदूषित होने से सुरक्षित रहता है।


#.जल-संग्रहण के उपायों से पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है। भौम-जल स्तर में बढ़ोत्तरी होने पर कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है। अतः जल संग्रहण कर कृषि उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।


#.सिंचाई में बिजली व जल दोनों की खपत होती है। जल संग्रहण कर भौम-जल स्तर को बढ़ाने से सिंचाई की आवश्यकता कम होगी साथ ही भविष्य में उपयोग के लिए ऊर्जा की खपत भी कम होगी।


#.कृषि उत्पादन से भोजन की आपूर्ति भी मनुष्यों व जन्तुओं के लिए पर्याप्त मात्रा में की जा सकेंगी। अतः इस प्रकार जल संग्रहण से मनुष्यों, जन्तुओं व वनस्पतियों को लाभ पहुँचाया जा सकता है।



प्रश्न 6. प्राकृतिक संसाधन से आप क्या समझते हैं? मानव समाज को होने वाले इसके लाभ का संक्षिप्त उदाहरण सहित वर्णन कीजिए। 


उत्तर वे पदार्थ, जो मानव के लिए उपयोगी हों अथवा जिनहें उपयोगी उत्पाद में रूपान्तरित किया जा सके या जिनका उपयोग किसी उपयोगी वस्तु के निर्माण में किया जा सके, संसाधन कहलाते हैं। वे संसाधन जिन्हें प्रकृति से प्राप्त किया जाता है, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं। प्राकृतिक संसाधन प्रकृति में वायु, जल, मृदा, खनिज, कोयला, पेट्रोलियम, वन्य प्राणी तथा पादपों (वनों) के रूप में संग्रहित होते हैं। 


मानव समाज को प्राकृतिक संसाधनों द्वारा निम्न लाभ होते हैं 



वन्य जीव एवं इनका संरक्षण वन, वन्य जीवों को आश्रय प्रदान करते हैं जिनका व्यापारिक लाभ के लिए अवैध शिकार किया जाता है। वन्य जीवों को उनकी त्वचा (चमड़े), दाँत, फर, पंख, शल्क आदि के लिए मारा जा रहा है। इनका उपयोग अनेक उत्पादों के व्यापारिक उत्पादन में किया जाता है। इस कारण खाद्य शृंखलाएँ प्रभावित होती हैं तथा पारितन्त्र का पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ जाता है।


जल एवं इसका संरक्षण जल, स्थलीय एवं जलीय जीवों की मूल आवश्यकता है, जो कई प्रकार के जल स्त्रोतों; जैसे-समुद्र, नदियों, झीलों, तालाबों, आदि में पाया जाता है। वर्षा, जल का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है। समुद्र, पृथ्वी पर सबसे बड़े जल स्रोत हैं, लेकिन इनका जल उपयोगी होता है, क्योंकि इसक जल लवणीय होता है। तथा इसको बिना शुद्धिकरण किए प्रयोग नहीं कर सकते हैं। 


हम जल स्रोतों का प्रबन्धन निम्न विधियों द्वारा करते हैं


#.खेती तथा दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बाँध, कुण्ड तथा नहरों का उपयोग करके।


#.बाँधों में संग्रहित जल का नियन्त्रित उपयोग करके।


कोयला और पेट्रोलियम कोयला एवं पेट्रोलियम जीवाश्मीय ईधन है, जो कार्बन के अतिरिक्त हाइड्रोजन, नाइट्रोजन व सल्फर के बने होते हैं। ये ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं।


कोयला एक ठोस कार्बनिक ईधन है, जो पृथ्वी के भूगर्भ में पाया जाता है। पेट्रोलियम (पेट्रो = चट्टानें तथा ओलियम = तेल) प्रकृति में तरल कार्बनिक रसायनों के रूप में पाया जाता है। यह अधिक मात्रा में पृथ्वी की सतहों के नीचे भूगर्भ में पाया जाता है।


कोयले का उपयोग ताप वैद्युत संयन्त्रों में बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जाता है, जबकि पेट्रोलियम उत्पादों; जैसे-पेट्रोल और डीजल का उपयोग स्कूटरों, मोटर-साइकिलों, कारों, बसों, ट्रकों, रेलगाड़ियों, जहाजों और वायुयानों को चलाने के लिए ईधन के रूप में प्रयोग किया जाता है।


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