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Class 12 chemistry chapter 08 d and f block elements(d तथा f ब्लॉक के तत्व) notes in hindi

 Class 12 chemistry chapter 08 d and f block elements notes in hindi


d तथा f ब्लॉक के तत्व


d and f block elements notes in hindi


 अध्याय 08 d-तथा f ब्लॉक के तत्व



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आवर्त सारणी के d ब्लॉक में वर्ग-3 से 12 तक के सत्व आते हैं, जिनमें चारों दीर्घ आवर्तो में d कक्षक भरे जाते हैं। f- ब्लॉक के तत्व वे तत्व हैं, जिनमें बाद के दो दीर्घ आवर्ती में 4f तथा 5f- कक्षक उत्तरोत्तर भरे जाते हैं। ये तत्व वर्ग-3 के औपचारिक सदस्य हैं।


d- ब्लॉक के तत्व : संक्रमण तत्व


वे तत्व जिनमें इलेक्ट्रॉन उपान्तिम ऊर्जा स्तरों के d कक्षकों में भरे जाते हैं, d ब्लॉक के तत्व कहलाते हैं। ये तत्व s - तथा p-ब्लॉक के मध्य स्थित होते हैं, इसलिए इन्हें संक्रमण तत्व भी कहते हैं।


संक्रमण तत्वों को निम्न श्रेणियों में विभक्त किया गया है। 


(i) प्रथम श्रेणी या 3d- श्रेणी इसमें  ²¹Sc से ³⁰Zn तक 10 तत्व होते हैं। Zn को छोड़कर शेष तत्वों में 3d-कक्षक आद्य या (+2) उत्तेजित अवस्था में अपूर्ण होता है।


(ii) द्वितीय श्रेणी या 4d- श्रेणी इसमें ³⁹Y से ⁴⁸Cd तक 10 तत्व होते हैं। इस श्रेणी में Cd में 40-कक्षक पूर्ण भरा हुआ होता है।



 (iii) तृतीय श्रेणी या 5d- श्रेणी  ⁵⁷La, ⁷²Hf से ⁸⁰Hg तक 10 तत्व होते हैं। इस श्रेणी में Hg में 5d-कक्षक पूर्ण भरा हुआ होता है।


 नोट Zn Cd Hg d-ब्लॉक के तत्व होते हुए भी संक्रमण तत्व नहीं कहलाते हैं, क्योंकि इनमें d- कक्षक मूल अथवा (+2) ऑक्सीकरण अवस्था में अपूर्ण नहीं होता है।


 (iv) चतुर्थ श्रेणी या 6d श्रेणी इसमें  ⁸⁹Ac, ¹⁰⁴Rf से ¹¹²Cn तक 10 तत्व हैं।


इलेक्ट्रॉनिक विन्यास


इस ब्लॉक के तत्वों का सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (n-1)d¹⁻¹⁰ ns¹⁻² होता है। इस विन्यास से स्पष्ट है, कि इन तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के केवल उपान्तिम कोश (अर्थात् (n-1)d-कक्षक] ही इलेक्ट्रॉनों की संख्या में भिन्न होते हैं। अतः ये तत्व s तथा p-ब्लॉक के तत्वों की भाँति भौतिक तथा रासायनिक गुणधर्मो में नियमित परिवर्तन प्रदर्शित नहीं करते हैं। इस ब्लॉक के तत्वों में से अर्द्ध-भरित तथा पूर्णतया भरित कक्षक वाले तत्व अपेक्षाकृत अधिक स्थायी होते हैं।


संक्रमण तत्वों के गुणधर्म


(i) इनके गलनांक s और p-ब्लॉक की धातुओं से अधिक होते हैं। 


(ii) ये s और p-ब्लॉक की धातुओं से अधिक कठोर होते हैं।


(iii) इनमें धात्विक चालकता उपस्थित होती है।


(iv) ये संकर आयन बनाते हैं।


 (v) ये रंगीन लवण बनाते हैं।


(vi) ये अनुचुम्बकीय और उत्प्रेरक दोनों प्रकार के गुण दर्शाते हैं।


आवर्ती गुणों में सामान्य प्रचलन


(i) भौतिक गुण सभी संक्रमण तत्व (Zn, Cd, Hg तथा Mi को छोड़कर) धात्विक गुण, जैसे-उच्च तनन सामर्थ्य, तन्यता, आघातवर्धनीयता, विद्युत चालकता तथा धात्विक चमक दर्शाते हैं। इन तत्वों में ns-इलेक्ट्रॉनों के अतिरिक्त अपूर्ण d- कक्षकों के इलेक्ट्रॉन भी धात्विक आबन्ध निर्माण में सहायता करते हैं। इस कारण संक्रमण तत्व प्रबल धात्विक लक्षण दर्शाते हैं तथा इनके गलनांक एवं क्वथनांक उच्च होते हैं।



(ii) परमाणवीय व आयनिक त्रिज्या संक्रमण श्रेणी में बाएँ से दाएँ जाने पर नाभिकीय आवेश दुर्बल परिरक्षण प्रभाव के कारण क्रमशः बढ़ता है।


 इस कारण श्रृंखला में पहले आकार घटता है, फिर स्थिर हो जाता है। श्रृंखला के अन्त में इलेक्ट्रॉन-इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षण के कारण आकार थोड़ा बढ़ जाता है। समूह में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणवीय त्रिज्याएँ बढ़ती हैं तथा द्वितीय व तृतीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों की परमाणवीय त्रिज्याएँ लगभग समान रहती हैं। इसका कारण लैन्थेनॉइड संकुचन है।


(ii) परमाणुकरण (कणक) की एन्थैल्पी संक्रमण तत्वों की कणक एन्थैल्पी के मान उच्च होते हैं। संक्रमण धातुओं में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या जितनी अधिक होगी, परमाणुकरण (कणक) की एन्थैल्पी का मान उतना उच्च होगा। इसका कारण यह है, कि अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ने से इनमें प्रबल अन्तर परमाण्विक अन्योन्य क्रियाएँ होती हैं। जिसके परिणामस्वरूप इनके परमाणुओं के मध्य प्रबल आबन्ध पाए जाते हैं।


(iv) आयनन एन्थैल्पी संक्रमण श्रेणी में बाएँ से दाएँ जाने पर आयनन एन्थैल्पी का मान नाभिकीय आवेश में वृद्धि के साथ बढ़ता है। यद्यपि इस वृद्धि में कई छोटी-छोटी विभिन्नताएँ भी पायी जाती हैं।


Ni की प्रथम व द्वितीय आयनन एन्थैल्पी का मान Pt की अपेक्षा कम होता है। अतः Ni को Ni²⁺ में परिवर्तित करने के लिए Pt को Pt²⁺ में परिवर्तित करने की अपेक्षा कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है इसलिए Ni (II) यौगिक, Pt(II) यौगिकों की अपेक्षा ऊष्मागतिकीय रूप से अधिक स्थायी होते हैं 



(v) परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्था ns-कक्षक व (n-1)d कक्षकों की ऊर्जा में कम अन्तर होने के कारण दोनों कक्षकों के इलेक्ट्रॉन आबन्ध बनाने में प्रयुक्त होते हैं। अतः संक्रमण तत्व परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं। संक्रमण तत्व निम्न ऑक्सीकरण अवस्था (+2 तथा + 3) में आयनिक यौगिक बनाते हैं, जबकि उच्च ऑक्सीकरण अवस्था में सामान्यतया सहसंयोजक यौगिक बनते है। Os व Ru  + 8 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं। इनकी उच्च ओंक्सीकरण अवस्थाएँ मुख्यतया फ्लुओराइडों या ऑक्साइडों में परिलक्षित होती हैं।



उच्च ऑक्सीकरण अवस्था का स्थायित्व


VO₂⁺< Cr₂O₇²⁻ < MnO₄⁻


 Mn द्वारा + 7 ऑक्सीकरण अवस्था, Mn₂O₇ तथा MnO₄⁻ में प्रेक्षित की जा सकती है। 


(vi) रंगीन आयनों का निर्माण संक्रमण तत्व अथवा धातु आयनों का रंग, अपूर्ण d- कक्षकों की उपस्थिति के कारण होता है। अपूर्ण d कक्षकों में उपस्थित अयुग्मित इलेक्ट्रॉन दृश्य क्षेत्र से प्रकाश का अवशोषण करके निम्न ऊर्जा वाले d. कक्षक से उच्च ऊर्जा वाले d- कक्षक में चले जाते हैं (d-d संक्रमण) । प्रेक्षित रंग, अवशोषित प्रकाश का पूरक रंग होता है। d¹से d⁹ विन्यास वाले तत्व या आयन रंगीन होते हैं, जबकि d⁰अथवा d¹⁰विन्यास वाले तत्व या आयन रंगहीन होते हैं।



 (vii) उत्प्रेरकीय गुण संक्रमण धातुएँ और इनके यौगिक उत्प्रेरक की भाँति कार्य करते हैं, इसका मुख्य कारण संक्रमण तत्वों की परिवर्तनशील संयोजकता तथा इनके द्वारा संकर यौगिकों का निर्माण करना है। 


उदाहरण V₂O₅ (सम्पर्क विधि द्वारा H₂SO₄के निर्माण में) तथा सूक्ष्म विभाजित आयरन (हैबर प्रक्रम द्वारा NH₃ के निर्माण में) Fe, Pt. Pd तथा Ni आदि भी उत्प्रेरक की भाँति प्रयुक्त होते हैं।


(vil) चुम्बकीय गुण संक्रमण तत्व और आयन, अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण अनुचुम्बकीय गुण परिलक्षित करते हैं तथा युग्मित इलेक्ट्रॉनों के कारण संक्रमण तत्व प्रतिचुम्बकीय गुण परिलक्षित करते हैं। 


चुम्बकीय आघूर्ण (μ) = √n (n + 2) BM


जहाँ, n = अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या है।


BM= बोर मैग्नेटॉन


(ix) संकुल यौगिकों का निर्माण छोटे आकार, उच्च नाभिकीय आवेश तथा उपयुक्त ऊर्जा के d उपकोश की उपलब्धता के कारण ही संक्रमण तत्व में संकुल यौगिक बनाने की प्रवृत्ति पायी जाती है।


(x) अन्तराकाशी यौगिकों का निर्माण अन्तराकाशी यौगिक मूल धातु से अधिक कठोर होते हैं तथा इनके गलनांक व क्वथनांक का मान अधिक होता है। इनकी

धात्विक चालकता सुरक्षित रहती है। अन्तराकाशी यौगिक रासायनिक रूप से अक्रिय होते हैं।

 उदाहरण Mn₄N. Fe₃H, TiC, आदि। 


(xi) मिश्र धातु का निर्माण मिश्र धातु दो या दो से अधिक धातुओं का सम्मिश्रण है। संक्रमण धातुओं के अभिलाक्षणिक गुणों तथा उनकी त्रिज्याओं में समानता के कारण संक्रमण धातुएँ मिश्र धातुओं का निर्माण करती हैं।




f-ब्लॉक के तत्व : अन्त: संक्रमण तत्व


 f - ब्लॉक की दो श्रेणियाँ 4f- तथा 5f- श्रेणी, अर्थात् लैन्थेनॉइड तथा ऐक्टिनॉइड श्रेणी में क्रमश: 14-14 तत्व उपस्थित होते हैं।


लैन्थेनॉइड


लैन्थेनॉइडों में सीरियम (⁵⁸Ce) से ल्यूटीशियम (⁷¹Lu) तक 14 तत्व होते हैं। ये अधिक क्रियाशील होते हैं। प्रकृति में इन्हें दुर्लभ मृदा तत्वों के नाम से भी जाना जाता है। ये मुक्त अवस्था में न होकर संयुक्त अवस्था (अयस्क के रूप) में पाए जाते हैं।


 इनका सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Xe] 4f¹⁻¹⁴ 5d⁰⁻¹ 6s²होता है। सभी लैन्थेनोइड चाँदी की भाँति चमकने वाली मृदु धातुएँ होती हैं।


बहुत से लैन्थेनॉइड अपनी ठोस एवं जलीय अवस्था में रंगीन होते हैं। f¹ से f¹³ विन्यास वाले तत्व के आयन f-f संक्रमण के कारण रंगीन होते हैं, जबकि f⁰ तथा f¹⁰ विन्यास वाले तत्वों के आयन रंगहीन होते हैं। La³⁺तथा Lu³⁺क्रमशः f⁰ तथा f¹⁰ विन्यास की उपस्थिति के कारण रंगहीन होते हैं। लैन्थेनॉइड सामान्यतया कीलेट लिगण्ड के साथ मिलकर चक्रीय (आबन्ध द्वारा) यौगिकों का निर्माण करते हैं।


 (i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास कुछ लैन्थेनाइड तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्न प्रकार हैं


₅₇La= [Xe] 5d¹ 6s²


₅₈Ce = [ Xe ] 4f¹ 5d¹ 6s²


₆₄Gd=[Xe] 4f⁷ 5d¹ 6s²


₆₅Tb = [Xe ] 4f⁹ d⁰ 6s²


 ₇₁Lu = [Xe ] 4f¹⁴  5d¹ 6s²



(ii) ऑक्सीकरण अवस्था इनकी सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था + 3 होती है, परन्तु + 2 तथा + 4 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ विलयन तथा ठोस यौगिकों में उपस्थित होती हैं। Ce की +4 ऑक्सीकरण अवस्था उत्कृष्ट गैस अभिविन्यास के कारण स्थायी है, परन्तु यह प्रबल ऑक्सीकारक है और पुनः +3 अवस्था में आ जाता है। Eu+ एक प्रबल अपचायक है। Pr Nd, To तथा Dy. + 4, ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं।


(iii) लैन्थेनॉइड संकुचन नाभिकीय आवेश बढ़ने के कारण La से Lu तक परमाण्विक तथा आयनिक त्रिज्या में कमी आती है, यह लक्षण लैन्थेनॉइड संकुचन कहलाता है। यह संकुचन f इलेक्ट्रॉनों के दुर्बल परिरक्षण प्रभाव के कारण होता है। लैन्थेनॉइड संकुचन के कारण निम्न प्रभाव उत्पन्न होते हैं


(a) समान परमाणु तथा समान आयनिक त्रिज्या


समूह-4     Zr               Hf


समूह-5      Nb              Ta




(b) सहसंयोजक लक्षणों में वृद्धि La³⁺ से Lu³⁺ तक आकार कम होने के कारण सहसंयोजक लक्षण बढ़ते हैं। अतः La(OH)₃अधिकतम क्षारीय है. जबकि Lu(OH)₃ कम क्षारीय है।


    बहुविकल्पीय प्रश्न  1 अंक



प्रश्न 1. संक्रमण तत्वों में 4d श्रेणी का तत्व है


(a) ₃₇A


(b) ₄₇B


(c) ₅₇C


(d) ₃₀D


उत्तर (b) 



प्रश्न 2. निम्न में अनुचुम्बकीय आयन है



 (b) Ni²⁺


(a) Zn²⁺


(c) Cu⁺


(d) Ag⁺


उत्तर (b)



प्रश्न 3. प्रतिचुम्बकीय आयन है


(a) Cu²⁺


(b) Fe²⁺


(c) Ni²⁺


(d) Zn²⁺


उत्तर (d)


(a) Fe3+ (b) Co2 + 



प्रश्न 4. आयन जिसमें सबसे अधिक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं 


(a) Fe³⁺


(c) Co³⁺


(c) Ni²⁺


(d)Cu²⁺


उत्तर (a) 



प्रश्न 5. संक्रमण धातु जो परिवर्तनशील ऑक्सीकरण अवस्था नहीं दर्शाती है वो है


(a)Ti


(b) V


(c) Fe


(d) Zn


उत्तर (d) 



प्रश्न 6. निम्न में से कौन-सा तत्व उत्प्रेरकीय गुण प्रदर्शित करता है?


(a) Ca


(b) Fe 


(c) Pb


(d) इनमें से कोई नहीं



उत्तर (b) 



प्रश्न 7. निम्न तत्वों में से लैन्थेनॉइड तत्व है



  1. Ra


(b) Ce


(c) Ac


(d) Zr



उत्तर (b) 



अतिलघु उत्तरीय प्रश्न   2 अंक


प्रश्न 1. संक्रमण तत्व क्या हैं?



अथवा संक्रमण तत्वों को d-ब्लॉक के तत्व क्यों कहते हैं? 


उत्तर वे तत्व जिनमें इलेक्ट्रॉन उपान्तिम ऊर्जा स्तरों के d कक्षकों में भरे जाते हैं, d.l ब्लॉक के तत्व कहलाते हैं। ये तत्व 8 तथा p-ब्लॉक के मध्य स्थित होते हैं, इसलिए इन्हें संक्रमण तत्व भी कहते हैं।



प्रश्न 2. संक्रमण तत्व की चार विशेषताओं को लिखिए। अथवा संक्रमण तत्वों के अभिलाक्षणिक गुणों को लिखिए।


अथवा संक्रमण तत्वों के प्रमुख गुणों का वर्णन कीजिए। 


उत्तर संक्रमण तत्वों की मुख्य विशेषताएँ


(i) इनमें धात्विक चालकता उपस्थित होती है।


(ii) ये संकर आयन बनाते हैं।


(iii) ये रंगीन लवण बनाते है।


(iv) ये अनुचुम्बकीय गुण तथा उत्प्रेरक गुण दर्शाते हैं।


प्रश्न 3. d- ब्लॉक तत्वों के निम्न गुणों की व्याख्या कीजिए


 (i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास


(ii) चुम्बकीय लक्षण


उत्तर (i) 


इलेक्ट्रॉनिक विन्यास सामान्य रूप से इन तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (n - 1)d¹ ⁻¹⁰ ns⁰⁻² होता है। संक्रमण तत्वों की प्रथम श्रेणी (3d श्रेणी) के बाह्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (मूल अवस्था) निम्न प्रकार है



प्रश्न 4. स्पष्ट कीजिए कि Cu⁺आयन जलीय विलयन में स्थायी क्यों नहीं है? 


 उत्तर जलीय विलयन में Cu⁺ (aq) निम्न असमानुपातित अभिक्रिया देता है


2Cu⁺(aq) → Cu²⁺(aq) + Cu (s)


जलीय विलयन में Cu⁺(aq) आयन की तुलना में Cu²⁺ (aq) आयन का अधिक स्थायित्व उच्च ऋणात्मक जलयोजन एन्थैल्पी, जलयोजन H° के कारण है। यह Cu²⁺ आयन के बनने में दी जाने वाली द्वितीय आयनन एन्थैल्पी की क्षतिपूर्ति करती है। इस प्रकार जलीय विलयन में Cu⁺ आयन, अधिक स्थाई Cu²⁺आयन में परिवर्तित हो जाता है।


प्रश्न 5. संक्रमण तत्वों में अनुचुम्बकीय तथा प्रतिचुम्बकीय लक्षण की एक उदाहरण द्वारा व्याख्या कीजिए। 


अथवा संक्रमण तत्वों के अनुचुम्बकीय लक्षण को स्पष्ट कीजिए। 


अथवा अधिकांश संक्रमण धातुएँ अनुचुम्बकीय व्यवहार प्रदर्शित करती हैं।क्यों ?



उत्तर संक्रमण तत्व और आयन, अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण अनुचुम्बकीय गुण परिलक्षित करते हैं तथा युग्मित इलेक्ट्रॉनों के कारण संक्रमण तत्व प्रतिचुम्बकीय गुण परिलक्षित करते हैं।


Cu⁺ = [Ar] 3d¹⁰  प्रतिचुम्बकीय 


Fe³⁺ = [3d⁵] अनुचुम्बकीय



प्रश्न 6. संक्रमण तत्व धात्विक लक्षण क्यों प्रदर्शित करते हैं?



उत्तर संक्रमण तत्वों की आयनन एन्थैल्पी का मान भिन्न होता है। इन तत्वों में ns इलेक्ट्रॉनों के अतिरिक्त अपूर्ण d कक्षको के इलेक्ट्रॉन भी धात्विक आबन्ध निर्माण में सहायता करते हैं। इस कारण संक्रमण तत्व धात्विक लक्षण दर्शाते हैं। 


प्रश्न 7. संक्रमण तत्व रंगीन यौगिक बनाते हैं।


अथवा संक्रमण तत्वों द्वारा रंगीन आयन बनाने की व्याख्या कीजिए। 


 उत्तर संक्रमण तत्व अथवा धातु आयनों का रंग अपूर्ण d कक्षकों की उपस्थिति के कारण होता है। अपूर्ण d- कक्षकों में उपस्थित अयुग्मित इलेक्ट्रॉन दृश्य क्षेत्र से प्रकाश का अवशोषण करके निम्न ऊर्जा वाले d-कक्षक से उच्च ऊर्जा वाले d-कक्षक में चले जाते हैं (d-d संक्रमण)। प्रेक्षित रंग, अवशोषित प्रकाश का पूरक रंग होता है। d¹ से d⁹ विन्यास वाले तत्व या आयन रंगीन होते हैं, जबकि d⁰ अथवा d¹⁰विन्यास वाले तत्व या आयन रंगहीन होते हैं।


प्रश्न 8. व्याख्या कीजिए कि क्यों अधिकांश संक्रमण धातुएँ उप-सहयोजन यौगिक बनाती हैं और परिवर्तनीय संयोजकता प्रदर्शित करती हैं?



उत्तर संकुल यौगिकों का निर्माण छोटे आकार, उच्च नाभिकीय आवेश तथा उपयुक्त ऊर्जा के d. उपकोश की उपलब्धता के कारण ही संक्रमण तत्व में संकुल यौगिक बनाने की प्रवृत्ति पायी जाती है।


परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्था ns-कक्षक व (n-1)d कक्षकों की ऊर्जाओं में कम अन्तर होने के कारण दोनों कक्षकों के इलेक्ट्रॉन आबन्ध बनाने में प्रयुक्त होते हैं अतः संक्रमण तत्व परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं। संक्रमण तत्व निम्न ऑक्सीकरण अवस्था में (+2 तथा +3) आयनिक यौगिक बनाते हैं, Os व Ru + 8 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं। इनकी उच्च ऑक्सीकरण अवस्थाएँ मुख्यतया फ्लुओराइडों या ऑक्साइडों में परिलक्षित होती हैं।



प्रश्न 9. आयतनात्मक विश्लेषण में परमैंगनेट विलयन को अम्लीय करने के लिए तनु सल्फ्यूरिक अम्ल के स्थान पर HNO₃ का प्रयोग क्यों नहीं किया जाता है?


उत्तर पोटैशियम परमैग्नेट एक प्रबल ऑक्सीकारक है, इसका प्रयोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष अनुमापन द्वारा अनेक पदार्थों के विश्लेषण में किया जाता है। यह स्वयं सूचक भी है। इसका प्रयोग सामान्यतः प्रबल अम्लीय माध्यम में किया जाता है। HNO₃, प्रबल ऑक्सीकारक है, यह ऑक्सीकरण-अपचयन अभिक्रियाओं में भाग


लेकर अनुमापन की यथार्थपरकता को प्रभावित कर सकता है। अतः इसका प्रयोग नहीं किया जाता है।



प्रश्न 10. अन्तः संक्रमण तत्व क्या है? इनके सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए।


उत्तर अन्तः संक्रमण तत्व जिन तत्वों में f उपकोश आंशिक भरित होते हैं,f -ब्लॉक के तत्व या अन्तःसंक्रमण तत्व कहलाते हैं। f ब्लॉक की दो श्रेणियों 4f- तथा 5f अर्थात् लैन्थेनॉइड तथा ऐक्टिनॉइड श्रेणी में क्रमशः 14-14 तत्व उपस्थित होते हैं। इनके सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्न हैं



(i) लैन्थेनॉइड = [Xe] 4f¹⁻¹⁴ , 5d⁰⁻¹, 6s²


 (ii) ऐक्टिनॉइड = [Rn] 5f¹⁻¹⁴, 6d⁰⁻¹, 7s² (थोरियम अपवाद)



प्रश्न 11. लैन्थेनॉइड तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए। 


उत्तर लैन्थेनॉइड का सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास

 [Xe] 4f¹⁻¹⁴ 5d⁰⁻¹ 6s²


प्रश्न 12. लैन्थेनॉइड संकुचन पर टिप्पणी लिखिए। 


अथवा लैन्थेनॉइड संकुचन क्या है? इसका कारण स्पष्ट कीजिए। 


अथवा लैन्थेनॉइड तत्वों का आकार La से Lu तक कम होता जाता है।


अथवा लैन्थेनॉइड संकुचन की व्याख्या संक्षेप में कीजिए।


अथवा लैन्थेनॉइड संकुचन को कारण सहित स्पष्ट कीजिए।


उत्तर नाभिकीय आवेश बढ़ने के कारण La से Lu तक परमाण्विक तथा आयनिक त्रिज्या में कमी आती है, यह लक्षण लैन्थेनॉइड संकुचन कहलाता है। यह संकुचन

f इलेक्ट्रॉनों के दुर्बल परिरक्षण प्रभाव के कारण होता है। कम प्रभावी परिरक्षण प्रभाव, नाभिक के आकर्षण बल को सन्तुलित नहीं कर पाता है परिणामस्वरूप नाभिकीय आकर्षण अधिक रहता है। अत: इन तत्वों के आकार में कमी आ जाती है। नाभिकीय आकर्षण बल >f  इलेक्ट्रॉनों का परिरक्षण प्रभाव 



प्रश्न 13. सीरियम (परमाणु क्रमांक 58) की +3 तथा +4आक्सीकरण अवस्थाएँ स्थायी क्यों होती है?


उत्तर सीरियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Xe] 4f¹ 5d¹ 6s² होता है। +4 ऑक्सीकरण अवस्था में इसका विन्यास [Xe] 4f⁰ 5d° 6s° हो जाता है। जोकि एक अक्रिय गैस विन्यास है, जबकि + 3ऑक्सीकरण अवस्था इसकी सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था है, अत: दोनों स्थायी हैं। 


प्रश्न 14.दो लैन्थेनॉइड तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखकर उनकी ऑक्सीकरण अवस्थाएँ लिखिए। 


उत्तर


लैन्थेनॉइड


57 लैन्थेनम (La)   5d¹ 6s²      +2  +3


58 सीरियम (Ce) 4f¹ 5d¹ 6s²            +2,+3, +4




लघु उत्तरीय प्रश्न  3 अंक


प्रश्न 1. संक्रमण तत्व की परिभाषा लिखिए। संक्रमण तत्वों के विशिष्ट गुणों का वर्णन कीजिए।


अथवा संक्रमण तत्व क्या है? इनकी मुख्य विशेषताओं को लिखिए।


अथवा संक्रमण तत्व किन तत्वों को कहते हैं, समझाइए? इनके दो प्रमुख लक्षण लिखिए। 


अथवा संक्रमण तत्वों से आप क्या समझते हैं? इनके चार प्रमुख लक्षण लिखिए।




उत्तर संक्रमण तत्व वे तत्व हैं, जिनमें इलेक्ट्रॉन उपान्तिम ऊर्जा स्तरों के d कक्षकों में भरे जाते हैं। ये तत्व s तथा p-ब्लॉक के मध्य स्थित होते हैं इसलिए इन्हें संक्रमण तत्व कहते हैं।


इनके विशिष्ट गुण या विशेषताएँ निम्न हैं


(i) ये संकर आयन बनाते हैं।


(ii) ये रंगीन लवण बनाते हैं।


(iii) ये अनुचुम्बकीय गुण तथा उत्प्रेरक गुण दर्शाते हैं। 


(iv) ये s और p-ब्लॉक की धातुओं से अधिक कठोर होते हैं।



प्रश्न 2. परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्थाओं से क्या तात्पर्य है? इसे संक्रमण तत्वों के सन्दर्भ में समझाइए 


अथवा संक्रमण तत्व परिवर्तनशील ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं। क्यों?


अथवा संक्रमण तत्व विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं।


उत्तर परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्थाओं से तात्पर्य है, कि तत्वों द्वारा यौगिकों में एक से अधिक ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाना। प्रत्येक श्रेणी के प्रथम तथा अन्तिम सदस्यों को छोड़कर शेष सभी संक्रमण तत्व परिवर्तनशील ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं, क्योंकि ns कक्षक तथा (n-1)d कक्षकों में इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जाओं में कम अन्तर होने के कारण दोनों कक्षकों के इलेक्ट्रॉन आबन्ध बनाने में प्रयुक्त होते हैं। अपवाद स्वरूप Sc केवल + 3 तथा Zn केवल + 2 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाता है।



प्रश्न 3. d ब्लॉक के तत्व अनुचुम्बकीय लक्षण और परिवर्ती संयोजकता क्यों प्रदर्शित करते है? स्पष्ट कीजिए।


 उत्तर संक्रमण तत्व और आयन, अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण अनुचुम्बकीय गुण परिलक्षित करते हैं तथा परिवर्ती संयोजकता प्रदर्शित करने का कारण ns-कक्षक व (n-1) d-कक्षकों की ऊर्जा में कम अन्तर होने के कारण दोनों कक्षकों के इलेक्ट्रॉन आबन्ध बनाने में प्रयुक्त होते हैं। अतः संक्रमण तत्व परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्था (संयोजकता) दर्शाते है।



प्रश्न 4. संक्रमण तत्वों के निम्नलिखित गुणों की व्याख्या कीजिए।


 (i) धात्विक प्रकृति (ii) अनुचुम्बकीय लक्षण


उत्तर (i) धात्विक प्रकृति सभी संक्रमण तत्व (Zn, Cd, Hg तथा Mn को छोड़कर) अभिधात्विक गुण, जैसे- उच्च तनन क्षमता, तन्यता, आद्यातवर्धनीयता, विद्युतचालकता तथा धात्विक चमक दर्शाते हैं। इनके गलनांक तथा क्वथनांक उच्च होते हैं। इन तत्वों में ns इलेक्ट्रॉनों के अतिरिक्त अपूर्ण d- कक्षकों के इलेक्ट्रॉन भी धात्विक आबन्ध निर्माण में सहायता करते हैं। इस कारण संक्रमण तत्व धात्विक लक्षण दर्शाते हैं।



(ii) अनुचुम्बकीय लक्षण संक्रमण तत्व और आयन, अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण अनुचुम्बकीय गुण परिलक्षित करते हैं तथा युग्मित इलेक्ट्रॉनों के कारण संक्रमण तत्व प्रतिचुम्बकीय गुण परिलक्षित करते हैं। अनुचुम्बकीय गुण अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या चुम्बकीय आघूर्ण =√n (n + 2) BM


जहाँ,


n=अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या।


BM= बोर मैग्नेटॉन




प्रश्न 5. असमानुपातन से आप क्या समझते हैं? जलीय विलयन में असमानुपातन अभिक्रियाओं के दो उदाहरण दीजिए।


उत्तर असमानुपातन अभिक्रिया में, एक ही पदार्थ (तत्व) का ऑक्सीकरण (ऑक्सीकरण संख्या बढ़ना) तथा अपनयन (ऑक्सीकरण संख्या घटना) दोनों होते हैं जिसके परिणामस्वरूप दो विभिन्न उत्पाद बनते हैं। दूसरे शब्दों में, एक ही पदार्थ किसी एक अणु के लिए ऑक्सीकारक का कार्य करता है तथा उसी समय यह दूसरे अणु के लिए अपचायक का कार्य करता है। 


उदाहरण


(i) 5MnO²⁻ + 4H⁺   → MnO₄⁻  + MnO₂+ H₂O


(ii) 3CrO⁻₄+ 8H⁺  →  CrO²⁻₄ + Cr³⁺ +2H₂O


प्रश्न 6. प्रथम संक्रमण श्रेणी में कौन-सी धातु अधिकतर +1 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाती है तथा क्यों?



उत्तर Cu[Ar]3d¹⁰ 4s¹ जब कॉपर परमाणु एक इलेक्ट्रॉन का त्याग करता है तो यह +1 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाता है तदुपरान्त स्थाई विन्यास, 3d¹⁰ सहित Cu⁺आयन बनाता है। अत: प्रथम संक्रमण श्रेणी में कॉपर धातु स्थाई विन्यास ग्रहण करने के लिए +1 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाती है।


प्रश्न 7. संक्रमण तत्वों से आप क्या समझते हैं? इनके द्वारा अन्तराकशी यौगिक तथा रंगीन आयन बनाने को स्पष्ट कीजिए। 


उत्तर वे तत्व जिनमें इलेक्ट्रॉन उपान्तिम ऊर्जा स्तरों के d कक्षकों में भरे जाते हैं, d ब्लॉक के तत्व कहलाते हैं। ये तत्व s  तथा p-ब्लॉक के मध्य स्थित होते हैं, इसलिए इन्हें संक्रमण तत्व भी कहते हैं।


अन्तराकाशी यौगिक जब छोटे परमाणु (जैसे- H C, N, B, इत्यादि) क्रिस्टल जालक के अन्तराकाशी हिस्सों में भर जाते हैं, तो अन्तराकाशी यौगिकों का निर्माण होता है। ये यौगिक मूल धातु से अधिक कठोर होते हैं तथा इनके गलनांक व क्वथनांक का मान अधिक होता है। इनकी धात्विक चालकता सुरक्षित रहती है। अन्तराकाशी यौगिक रासायनिक रूप से अक्रिय होते हैं। उदाहरण VH. Fe₃  C, TiH आदि।


रंगीन आयन संक्रमण तत्व अथवा धातु आयनों का रंग अपूर्ण d कक्षकों की उपस्थिति के कारण होता है। अपूर्ण d. कक्षकों में उपस्थित अयुग्मित इलेक्ट्रॉन दृश्य क्षेत्र से प्रकाश का अवशोषण करके निम्न ऊर्जा वाले d कक्षक से उच्च ऊर्जा वाले d कक्षक में चले जाते हैं (d-d संक्रमण)। प्रेक्षित रंग, अवशोषित प्रकाश का पूरक रंग होता है। d¹ से d⁹ विन्यास वाले तत्व या आयन रंगीन होते है, जबकि d⁰ अथवा  d⁹ विन्यास वाले तत्व या आयन रंगहीन होते हैं।



प्रश्न 8. प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्व, भारी संक्रमण तत्वों के अनेक गुणों से.. भिन्नता प्रदर्शित करते हैं। टिप्पणी कीजिए। 


उत्तर भारी संक्रमण तत्व 4d, 5d तथा 6d श्रेणी के तत्व है। 3d संक्रमण तत्वों से इनके गुणों में भिन्नता के निम्न कारण हैं


(i) प्रथम संक्रमण श्रेणी (3 d) के तत्वों की तुलना में इनके संगत भारी संक्रमण तत्वों (द्वितीय संक्रमण श्रेणी, 4d तथा तृतीय संक्रमण श्रेणी, 5d) का परमाण्वीय आकार बड़ा है। यद्यपि 4d श्रेणी तथा 5d श्रेणी के अनुरूप तत्वों की त्रिज्याएँ लगभग समान हैं।


(ii) 3 d श्रेणी तथा 4 d श्रेणी के तत्वों की आयनन एन्थैल्पी की अपेक्षा इनके संगत 5 d श्रेणी के तत्वों की एन्थैल्पी अधिक है।



 (iii) 4 d श्रेणी तथा 5d श्रेणी के तत्वों की कणन एन्थैल्पी इनके संगत 3d श्रेणी के तत्वों से उच्च होती है। 


(iv) भारी संक्रमण तत्वों के क्वथनांक तथा गलनांक 3 d श्रेणी के तत्वों की अपेक्षा उच्च होते हैं। ऐसा प्रबल अंतरापरमाण्विक धात्विक आबंधन के कारण है।


प्रश्न 9. लैन्थेनॉइड तत्वों के दो उदाहरण दीजिए। इनके दो मुख्य उपयोग लिखिए। 



उत्तर लैन्थेनॉइड तत्व 57 लैन्थेनम (La)


                             58 सीरियम (Ce)


उपयोग


(i) लैन्थेनम का प्रयोग कार्बन आर्क लाइट बनाने में होता है। 


(ii) मिश्रधातु बनाने में।



लघु उत्तरीय प्रश्न II     4 अंक


प्रश्न 1. d-ब्लॉक के तत्व क्या हैं? उनको संक्रमण तत्व क्यों कहते हैं? उनके निम्नलिखित गुणों को कारण सहित समझाइए ।



(ii) विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाएँ।


(i) चुम्बकीय गुण 



उत्तर


 संक्रमण तत्व वे तत्व जिनमें इलेक्ट्रॉन उपान्तिम ऊर्जा स्तरों के d कक्षकों में भरे जाते हैं, d-ब्लॉक के तत्व कहलाते हैं। ये तत्व - तथा p-ब्लॉक के मध्य स्थित होते हैं, इसलिए इन्हें संक्रमण तत्व भी कहते हैं।




(i) चुम्बकीय गुण संक्रमण तत्व और आयन, अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण अनुचुम्बकीय गुण परिलक्षित करते हैं तथा युग्मित इलेक्ट्रॉनों के कारण संक्रमण तत्व प्रतिचुम्बकीय गुण परिलक्षित करते हैं


चुम्बकीय आघूर्ण (1) = √n (n + 2 ) 


BM जहाँ, n= अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या है।


BM बोर मैग्नेटॉन


(ii) परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्था ns-कक्षक व (n-1)d-कक्षकों की ऊर्जा में कम अन्तर होने के कारण दोनों कक्षकों के इलेक्ट्रॉन आबन्ध बनाने में प्रयुक्त होते हैं।


अतः संक्रमण तत्व परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं। संक्रमण तत्व निम्न ऑक्सीकरण अवस्था में (+ 2 तथा 3) में आयनिक यौगिक बनाते हैं, जबकि उच्च ऑक्सीकरण अवस्था में सामान्यतया सहसंयोजक यौगिक बनाते हैं। Os व Ru, +8 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं। इनकी उच्च ऑक्सीकरण अवस्थाएँ मुख्यतया फ्लुओराइडों या ऑक्साइडों में परिलक्षित होती है। उच्च ऑक्सीकरण अवस्था का स्थायित्व 


VO⁺₂< Cr₂O²⁻₇ < MnO⁻₄


Mn द्वारा +7 ऑक्सीकरण अवस्था Mn₂O₇तथा MnO⁻₄में प्रेक्षित की जा सकती है।


प्रश्न 2. कारण देते हुए स्पष्ट कीजिए


(i) संक्रमण धातुएँ तथा उनके अधिकांश यौगिक अनुचुम्बकीय हैं।


(ii) संक्रमण धातुओं की कणन एन्यैल्पी के मान उच्च होते हैं।


(iii) संक्रमण धातुएँ सामान्यतः रंगीन यौगिक बनाती हैं। 


(iv) संक्रमण धातुएँ तथा इनके अनेक यौगिक उत्तम उत्प्रेरक का कार्य करते हैं।




उत्तर (i) संक्रमण तत्वों के पास अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं। प्रत्येक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन का चुम्बकीय आघूर्ण, प्रचक्रण कोणीय संवेग तथा कक्षीय कोणीय संवेग से संबंधित होता है। संक्रमण धातुओं में अनुचुम्बकत्व का यही कारण है।


(ii) इनके परमाणुओं में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की अधिक संख्या में उपस्थिति उच्च कणन एन्थैल्पी का कारण है। इनके परमाणुओं में प्रबल अंतरापरमाण्विक अन्योन्य क्रियाएँ होती है जिसके कारण इनके बीच मजबूत आबंधन होते हैं।


(iii) दृश्य प्रक्षेत्र से प्रकाश का आंशिक अवशोषण होने से संक्रमण धातुएँ रंगीन यौगिकों को निर्मित करती हैं। इलेक्ट्रॉन दृश्य प्रक्षेत्र से विशिष्ट आवृत्ति वाले विकिरण को अवशोषित करता है तथा उच्च ऊर्जा वाले d-कक्षक में चला जाता है।


(iv) उत्प्रेरक के ठोस पृष्ठ पर अभिकारक के अणुओं तथा उत्प्रेरक की सतह के परमाणुओं के बीच आबंध बनते हैं। (आबंध बनाने के लिए प्रथम संक्रमण श्रेणी की धातुएँ 3d एवं 4s 'इलेक्ट्रॉनों का उपयोग करती हैं) जिसके परिणामस्वरूप, उत्प्रेरक की सतह पर अभिकारक की सान्द्रता में वृद्धि हो जाती है तथा अभिकारक के अणुओं में उपस्थित आबंध दुर्बल हो जाते हैं तथा सक्रियण ऊर्जा का मान घट जाता है। संक्रमण धातुओं के आयन परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं इसीलिए ये प्रभावी उत्प्रेरक हैं। 

                                            Fe³⁺

उदाहरण अभिक्रिया 2I⁻ + S₂O²⁻₈→  I₂ +2SO₄²⁻ 


इस उत्प्रेरकीय अभिक्रिया की क्रियाविधि इस प्रकार है 


(a) 2Fe³⁺  + 2I⁻ → 2Fe²⁺ + I₂


(b) 2Fe²⁺ + S₂O²⁻₈ → 2Fe³⁺ + 2SO₄²⁻ 


प्रश्न 3.(i) f- ब्लॉक के तत्वों की विशेषताएँ बताइए।


(ii) संक्रमण तत्वों से आप क्या समझते हैं?


इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। 



उत्तर (i) f-ब्लॉक के तत्वों की विशेषताएँ


(a) इनके घनत्व उच्च होते हैं तथा सामान्यतया परमाणु क्रमांक में वृद्धि के साथ बढ़ते हैं तथा इसी क्रम में इनकी कठोरता बढ़ती है।


(b) ये सभी परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं।


 (c) इनके यौगिक सामान्यतया रंगीन तथा अनुचुम्बकीय होते हैं।


(d) लैन्थेनॉइड, लैन्थेनॉइड आकुंचन तथा ऐक्टिनॉइड, ऐक्टिनॉइड आकुंचन दर्शाते हैं।


 (e) सभी ऐक्टिनॉइड रेडियोऐक्टिव तत्व है।



(ii) संक्रमण तत्व और इनकी विशेषताएँ वे तत्व जिनमें इलेक्ट्रॉन उपान्तिम ऊर्जा स्तरों के d कक्षकों में भरे जाते हैं, d. ब्लॉक के तत्व कहलाते हैं। ये तत्व s- तथा p-ब्लॉक के मध्य स्थित होते हैं इसलिए इन्हें संक्रमण तत्व भी कहते हैं।


चार प्रमुख लक्षण


(i) ये संकर आयन बनाते हैं। 


(ii) ये रंगीन लवण बनाते हैं।


(iii) ये अनुचुम्बकीय गुण तथा उत्प्रेरक गुण प्रदर्शित करते हैं। 


(iv) ये s और p-ब्लॉक की धातुओं से अधिक कठोर होते हैं।


प्रश्न 4. संक्रमण तत्वों के निम्नलिखित गुणों की व्याख्या कीजिए


(i) गलनांक तथा क्वथनांक (ii) आयनन ऊर्जा




उत्तर (i) गलनांक तथा क्वथनांक संक्रमण तत्त्वों के गलनांक तथा क्वथनांक s तथा p-ब्लॉक के तत्वों की तुलना में अत्यन्त उच्च होते हैं। जिसका कारण इसके मध्य प्रबलतम बलों की उपस्थिति है, जो इनके परमाणुओं  को आपस में बाँधे रखते हैं।


 जैसे-जैसे d-इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ती है, परमाणुओं के बीच सहसंयोजी आबन्ध की संख्या Cr-Mo-W तक बढ़ती है, जहाँ प्रत्येक d-कक्षक में केवल अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं अतः सहसंयोजी बन्ध के अवसर सर्वाधिक होते हैं।


Mn में पाँच अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के बाद भी इसका अनआपेक्षित निम्न गलनांक तथा क्वथनांक इसकी संकुल संरचना के कारण होता है। यह धात्विक तथा सहसंयोजी आबन्ध में असमर्थ होता है।


Zn, Cd तथा Hg में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों [ (n-1)d¹⁰4s² विन्यास] की अनुपस्थिति के कारण d-इलेक्ट्रॉन धात्विक आबन्ध निर्माण के लिए तुरन्त उपलब्ध नहीं होते हैं परिणामस्वरूप धात्विक आबन्ध दुर्बल होते है। जिसके कारण इनके गलनांक तथा क्वथनांक निम्न होते हैं।



प्रश्न 5. लैन्थेनॉइड क्या हैं? उनके नाम और इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए। परमाणु क्रमांक बढ़ने के साथ लैन्थेनॉइडों के आकार में कमी क्यों आती है? उनके ऑक्सीकरण अवस्थाओं को समझाइए। 


उत्तर


 लैन्थेनॉइड लैन्थेनॉइडों में सीरियम (⁵⁸Ce) से ल्यूटीशियम (⁷¹Lu) तक 14 तत्व होते है। ये अधिक क्रियाशील होते हैं। प्रकृति में इन्हें दुर्लभ मृदा तत्वों के नाम से भी जाना जाता है। ये मुक्त अवस्था में न होकर संयुक्त अवस्था (अयस्क के रूप) में पाए जाते हैं। इनका सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Xe] 4f¹⁻¹⁰ 5d⁰⁻¹ 6s²  होता है। सभी लैन्थेनॉइड चाँदी की भाँति चमकने वाली मृदु धातुएँ होती हैं। 


बहुत से लैन्थेनॉइड अपनी ठोस एवं जलीय अवस्था में रंगीन होते हैं। f¹ से f¹³ विन्यास वाले तत्व के आयन f-f- संक्रमण के कारण रंगीन होते हैं, जबकि f⁰ तथा f¹⁴ विन्यास वाले तत्वों के आयन रंगहीन होते हैं। La³⁺तथा Lu³⁺ क्रमशः f⁰  तथा f¹⁴ विन्यास की उपस्थिति के कारण रंगहीन होते हैं। लैन्थेनॉइड सामान्यतया कीलेट लिगैण्ड के साथ मिलकर चक्रीय (आबन्ध द्वारा) यौगिकों का निर्माण करते हैं।


ऑक्सीकरण अवस्था इनकी सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था + 3 होती है, परन्तु + 2 तथा + 4 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ विलयन तथा ठोस यौगिकों में उपस्थित होती हैं। Ce की +4 ऑक्सीकरण अवस्था उत्कृष्ट गैस अभिविन्यास के कारण स्थायी है, परन्तु यह प्रबल ऑक्सीकारक है और पुनः +3 अवस्था में आ जाता है।




Eu²⁺ एक प्रबल अपचायक है। Pr, Nd, To तथा Dy. ⁺4 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं।


लैन्थेनॉइड संकुचन नाभिकीय आवेश बढ़ने के कारण La से Lu तक परमाण्विक तथा आयनिक त्रिज्या में कमी आती है, यह लक्षण लैन्थेनॉइड संकुचन कहलाता है। यह संकुचन f-इलेक्ट्रॉनों के दुर्बल परिरक्षण प्रभाव के कारण होता है।


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