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यूपी बोर्ड कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान अध्याय 11 संघवाद का सम्पूर्ण हल//10th social science notes

 यूपी बोर्ड कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान अध्याय 11 संघवाद का सम्पूर्ण हल


class 10 social science chapter 11 sanghvad full solutions pdf







संघवाद(नागरिक शास्त्र)




याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु



1.संघीय शासन व्यवस्था में सर्वोच्च सत्ता केन्द्रीय प्राधिकार और उसकी विभिन्न आनुषंगिक इकाइयों के बीच बँट जाती है।


2.संघीय व्यवस्था में दो या दो से अधिक सरकारें होती हैं। अलग-अलग स्तर की सरकारें एक ही नागरिक समूह पर शासन करती हैं पर कानून बनाने, कर वसूलने और प्रशासन का उनका अपना-अपना अधिकार क्षेत्र होता है।


3."संघीय व्यवस्था में विभिन्न स्तरों की सरकारों के अधिकार क्षेत्र संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णित होते हैं, इसलिए संविधान सरकार के हर स्तर के अस्तित्व और प्राधिकार की गारंटी और सुरक्षा देता है।


4."संघीय व्यवस्था में संविधान के मौलिक प्रावधानों को किसी एक स्तर की सरकार अकेले नहीं बदल सकती। ऐसे बदलाव दोनों स्तर की सरकारों की सहमति से ही हो सकते हैं। अदालतों को संविधान एवं विभिन्न स्तर की सरकारों के अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार है। विभिन्न स्तर की सरकारों के बीच अधिकारों के विवाद की स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय निर्णायक की भूमिका निभाता है।



5.संघीय शासन व्यवस्था के दोहरे उद्देश्य हैं- देश की एकता की सुरक्षा करना और उसे बढ़ावा देना तथा इसके साथ ही क्षेत्रीय विविधताओं का पूरा सम्मान करना। इस व्यवस्था में वित्तीय स्वायत्तता निश्चित करने के लिए विभिन्न स्तर की सरकारों के लिए राजस्व के अलग-अलग स्रोत निर्धारित हैं।


6.संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैण्ड और ऑस्ट्रेलिया की संघीय व्यवस्था वाले मुल्कों में आमतौर पर प्रांतों को समान अधिकार होता है और वे केन्द्र की तुलना में ज्यादा ताकतवर हैं।


7. भारत, बेल्जियम और स्पेन में राज्यों की तुलना में केन्द्र सरकार ज्यादा शक्तिशाली है।


8.भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विधायी अधिकारों को तीन सूचियों में वर्गीकृत किया गया है-संघ सूची, राज्य सूची समवर्ती सूची। व


9. भारत में जम्मू-कश्मीर एकमात्र ऐसा राज्य था जिसका अपना संविधान था। इस राज्य में विधानसभा की अनुमति के बगैर भारतीय संविधान के कई प्रावधानों को लागू नहीं किया जाता था। इस राज्य के स्थायी निवासियों के अतिरिक्त कोई भी भारतीय नागरिक यहाँ जमीन या मकान नहीं खरीद सकता था। 



10. भारतीय संविधान में हिंदी सहित कुल 22 भाषाओं को अनुसूचित भाषा का दर्जा दिया गया है।


11. भारत में 1990 के बाद देश के अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ। इसी दौर में केन्द्र में गठबंधन सरकार की शुरूआत हुई। 



12.गाँवों के स्तर पर मौजूद स्थानीय शासन व्यवस्था को पंचायती राज के नाम से जाना जाता है।





महत्त्वपूर्ण शब्दावली


एकात्मक व्यवस्था—जिन देशों में एक ही सामान्य सरकार काम करती है जिसे हम केंद्रीय सरकार कहते हैं, और बाकी इकाइयाँ उसके अधीन होकर काम करती हैं, एकात्मक व्यवस्था होती है। इसमें केन्द्रीय सरकार प्रांतीय या स्थानीय सरकारों को आदेश दे सकती है।


संघात्मक व्यवस्था-वह शासन व्यवस्था जिसमें एक ही समय में दो या अधिक सरकारें काम करें, संघात्मक व्यवस्था कहलाती है। इस व्यवस्था में केंद्र व राज्य, दो सरकारें प्रमुख होती हैं। दोनों को अपनी शक्तियाँ संविधान से मिली होती हैं। दोनों सरकारें एक-दूसरे के प्रति जवाबदेह न होकर जनता के प्रति जवाबदेह होती हैं।


संघ सूची–विषयों की वह सूची जिस पर केंद्र सरकार कानून बनाए, संघ सूची कहलाती है। इसमें ऐसे महत्त्वपूर्ण विषय रखे जाते हैं जो पूरे देश पर प्रभाव डालते हैं।


राज्य सूची विषयों की वह सूची जिस पर राज्य सरकार कानून बनाती है। इसमें कृषि, सिंचाई, व्यापार जैसे विषय पाए जाते हैं। 



समवर्ती सूची–विषयों की वह सूची जिस पर कानून बनाने का अधिकार राज्य और केंद्र सरकार दोनों का होता है। लेकिन जब दोनों के कानून में टकराव हो तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है।



अवशिष्ट सूची विषयों की वह सूची जिस पर केंद्र सरकार कानून बनाती है। इसमें वे विषय रखे गए हैं जो तीनों सूचियों में शामिल नहीं हो पाए थे।



 स्थानीय शासन सत्ता के तीन स्तरीय ढाँचे का तीसरा स्तर स्थानीय शासन कहलाता है जिसमें एक स्थान विशेष के लोग अपने लिए स्वयं कानून बनाते हैं।


पंच प्रत्येक गाँव में एक ग्राम पंचायत होती है। इसके सदस्यों को पंच कहा जाता है।


सरपंच ग्राम पंचायत के अध्यक्ष को सरपंच कहते हैं। इसका चुनाव गाँव में रहने वाले सभी वयस्क लोग करते हैं।


 पंचायत समिति कई ग्राम पंचायतों को मिलाकर पंचायत समिति का निर्माण किया जाता है। इसे मंडल या प्रखंड स्तरीय पंचायत भी कह सकते हैं।


जिला परिषद्-किसी जिले की सभी पंचायत समितियों को मिलाकर जिला परिषद् का गठन किया जाता है। " 


मेयर–शहरों में नगरपालिका स्थानीय सरकार के रूप में काम करती है। नगरपालिका के राजनीतिक प्रधान को मेयर कहते हैं।




बहुविकल्पीय प्रश्न               1 अंक


प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-सा संघीय राज्य नहीं है?


(क) मणिपुर 


(ख) हिमाचल प्रदेश


(ग) अरुणाचल प्रदेश


(घ) दिल्ली


उत्तर- (घ) दिल्ली



प्रश्न2. भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में कितनी भाषाओं का समावेश है?



(क) 20


(ख) 22


(ग) 24


(घ) 26


उत्तर-


(ख) 22



प्रश्न 3.निम्नलिखित में से किसमें महिलाओं के लिए 'आरक्षण' सुनिश्चित है?



(क) विधानसभाओं में


(ख) लोकसभा में


(ग) पंचायती राज संस्थाओं में 


(घ) राज्यसभा में 



उत्तर-


(ग) पंचायती राज संस्थाओं में



प्रश्न 4.भारत में पंचायती राज्य की स्थापना हुई थी



(क) 1980 में


(ख) 1990 में


(ग) 1992 में


(घ) 2004 में


उत्तर- (ग) 1992 में 


प्रश्न 5.भारत में कुल कितने संघीय राज्य हैं?



(क) 27


(ख) 28


(ग) 29


(घ) 30


उत्तर


ख 28


प्रश्न 6.संविधान में उल्लिखित तीन सूचियों में से, निम्नलिखित में से कौन-सा विषय समवर्ती सूची में शामिल है?


(क) शिक्षा


(ख) कृषि


(ग) पुलिस


(घ) रक्षा


उत्तर-


(क) शिक्षा


प्रश्न 7. ग्रामीण स्तर पर संचालित प्रशासन को क्या कहते हैं?


(क) स्थानीय प्रशासन


(ख) पंचायत


(ग) ग्राम सभा


(घ) ग्रामोदय


उत्तर-


(क) स्थानीय प्रशासन


प्रश्न 8.वर्तमान भारतीय संघ प्रणाली में कितने केन्द्रशासित प्रदेश हैं?


(क) 09


(ख) 07


(ग) 10


(घ) 08




उत्तर-


(घ) 08


प्रश्न 9. संघात्मक शासन प्रणाली में अधिकारों का विभाजन होता है




(क) केन्द्र एवं राज्यों (इकाइयों) के मध्य


(ख) एक राज्य एवं अन्य राज्यों के मध्य 


(ग) व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका के मध्य


(घ) व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका के मध्य 


उत्तर

(क) केन्द्र एवं राज्यों (इकाइयों) के मध्य




प्रश्न10. प्रान्तीय प्रशासन का संचालन कौन करता है?


(क) प्रधानमंत्री


(ख) मुख्यमंत्री


(ग) राज्यपाल


(घ) जिलाधिकारी



उत्तर (ख) मुख्यमंत्री



अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1. अधिकार क्षेत्र से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- ऐसा दायरा जिस पर किसी का वैधानिक अधिकार हो। यह दायरा भौगोलिक सीमा के अंतर्गत परिभाषित होता है अथवा इसके अंतर्गत कुछ विषयों

को भी रखा जा सकता है।


प्रश्न 2. एकात्मक शासन व्यवस्था से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- एकात्मक शासन व्यवस्था में एक स्तरीय सरकार होती है बाकी इकाइयाँ उसके अधीन होकर काम करती हैं। इसमें केंद्रीय सरकार प्रांतीय या स्थानीय सरकारों को आदेश दे सकती है।


प्रश्न 3. संघीय शासन व्यवस्था से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- वह शासन व्यवस्था जिसमें एक ही समय में दो अधिक सरकारें काम करें, संघात्मक व्यवस्था कहलाती है।


प्रश्न 4. गठबंधन सरकार से क्या तात्पर्य है?


 उत्तर- एक से ज्यादा राजनीतिक पार्टियों द्वारा साथ मिलकर बनाई गई सरकार को गठबंधन सरकार कहते हैं।


प्रश्न 5. संघीय शासन व्यवस्था के दोहरे उद्देश्य क्या हैं? 


उत्तर- देश की एकता की सुरक्षा करना और उसे बढ़ावा देना तथा इसके साथ ही क्षेत्रीय विविधताओं का पूरा सम्मान करना। विभिन्न स्तरों की सरकारों के बीच सत्ता के बँटवारे के नियमों पर सहमति होनी चाहिए और इनका एक-दूसरे पर भरोसा होना चाहिए कि वे अपने-अपने अधिकार क्षेत्रों को मानेंगे।


प्रश्न 6. समवर्ती सूची क्या है?


या समवर्ती सूची के चार विषयों का उल्लेख कीजिए।



उत्तर- विषयों की सूची जिस पर कानून बनाने का अधिकार राज्य और केंद्र सरकार दोनों का होता है। लेकिन जब दोनों के कानून में टकराव हो तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है। इस सूची में शिक्षा, वन मजदूर संघ, गोद लेना और उत्तराधिकार जैसे विषय शामिल हैं।


प्रश्न 7. अवशिष्ट सूची क्या है?


उत्तर विषयों की वह सूची जिस पर केंद्र सरकार कानून बनाती है। इसमें वे विषय रखे गए हैं जो तीनों सूचियों में शामिल नहीं हो पाए थे।


प्रश्न 8.भारत में विकेंद्रीकरण के पीछे बुनियादी सोच क्या है?


उत्तर


(i) शक्ति का संतुलन बना रहे।


(ii) केंद्र सरकार निरंकुश न हो।


(iii) अनेक मुद्दे और समस्याओं का निपटारा स्थानीय स्तर पर ही बढ़िया ढंग से हो सकता है।


 प्रश्न 9. संघीय शासन व्यवस्था के गठन का दूसरा तरीका क्या है?


उत्तर- (i) बड़े देश द्वारा अपनी आंतरिक विविधता को ध्यान में रखते हुए राज्यों का गठन करना।


(ii) राज्य और राष्ट्रीय सरकार के बीच सत्ता का बँटवारा कर देना


(iii) भारत, बेल्जियम और स्पेन संघीय व्यवस्था का तरीका।


प्रश्न 10. विश्व के दो संघात्मक राज्यों के नाम बताइए।


उत्तर

1. भारत तथा


2. अमेरिका



लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक


प्रश्न1. संघात्मक शासन की स्थापना के दो प्रमुख तरीकों का वर्णन कीजिए। 



उत्तर .संघात्मक शासन की स्थापना के दो तरीके निम्नलिखित हैं


(i) दो या अधिक स्वतंत्र राष्ट्रों को साथ लाकर एक बड़ी इकाई गठित करके संघ का निर्माण किया जाता है। इसमें सभी स्वतंत्र राष्ट्र अपनी संप्रभुता के साथ रहते हैं, अपनी अलग-अलग पहचान बनाए रखते हैं और अपनी सुरक्षा और खुशहाली बढ़ाते हैं। इसके उदाहरण हैं— संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रेलिया। इस व्यवस्था में प्रांतों को समान अधिकार होता है।


(ii) दूसरा तरीका है, एक बड़े देश द्वारा अपनी आंतरिक विविधता को ध्यान में रखते हुए राज्यों का गठन करना और फिर राज्य और राष्ट्रीय सरकार के बीच सत्ता का बँटवारा कर देना। भारत, बेल्जियम और स्पेन इसके उदाहरण हैं। इस श्रेणी में राज्यों से केंद्र सरकार अधिक शक्तिशाली होती है। अक्सर इस व्यवस्था में विभिन्न राज्यों को समान अधिकार दिए जाते हैं।



प्रश्न 2. भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बँटवारा किस प्रकार किया गया है?


उत्तर- संविधान में स्पष्ट रूप से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विधायी अधिकारों का बँटवारा निम्न प्रकार किया गया है


1. संघ सूची - इसमें प्रतिरक्षा, विदेश, बैकिंग, संचार, मुद्रा जैसे राष्ट्रीय महत्त्व के विषय हैं। इन पर केंद्र सरकार कानून बनाती है।


2. राज्य सूची – इसमें पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि, सिंचाई जैसे प्रांतीय महत्त्व के विषय आते हैं। इन पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकार को है।


3. समवर्ती सूची– इसमें शिक्षा, वन, मजदूर संघ, विवाह जैसे विषय शामिल हैं। इन पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र तथा राज्य दोनों सरकारों को है। लेकिन जब दोनों के कानूनों में टकराव हो तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया कानून ही मान्य होता है।


4. अवशिष्ट – अवशिष्ट विषयों की सूची में वे विषय रखे गए जो तीनों सूचियों में शामिल नहीं थे या जो नए विषय उभरे हैं। इन पर केंद्र सरकार कानून बनाती है।


प्रश्न 3. स्थानीय सरकारों के महत्त्व का वर्णन कीजिए।


उत्तर- जब केंद्र और राज्य सरकारों से शक्तियाँ लेकर स्थानीय सरकारों को दी जाती हैं तो इसे सत्ता का विकेंद्रीकरण कहते हैं। इसमें तीसरे स्तर को स्थानीय शासन कहा जाता है। स्थानीय शासन का महत्त्व निम्नलिखित है


(i) अनेक समस्याओं का निपटारा स्थानीय स्तर पर ही बढ़िया ढंग से हो सकता है क्योंकि लोगों को अपने इलाके की समस्याओं की बेहतर समझ होती है।


(ii) लोगों को इस बात की भी जानकारी होती है कि पैसा कहाँ खर्च किया जाए और चीजों का अधिक कुशलता से उपयोग किस तरह किया जा सकता है।


(iii) स्थानीय स्तर पर लोगों को फैसलों में सीधे भागीदार बनाना भी संभव हो जाता है। इससे लोकतांत्रिक भागीदारी की आदत पड़ती है।


इस प्रकार स्थानीय सरकारों की स्थापना स्वशासन के लोकतांत्रिक सिद्धांत को वास्तविक बनाने का सबसे अच्छा तरीका है।



प्रश्न 4. संघवाद क्या है? इसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।


उत्तर- संघवाद – संघवाद सरकार का एक प्रारूप है जिसमें सर्वोच्च सत्ता केन्द्रीय प्राधिकार और उसकी विभिन्न आनुषंगिक इकाइयों के बीच बँट जाती है।


संघवाद की प्रमुख विशेषताएँ - संघवाद की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं


(i) यहाँ सरकार दो या अधिक स्तरों वाली होती है।


(ii) अलग-अलग स्तर की सरकारें एक ही नागरिक समूह पर शासन करती हैं पर कानून बनाने, कर वसूलने और प्रशासन का उनका अपना-अपना अधिकार-क्षेत्र होता है।


(iii) विभिन्न स्तरों की सरकारों के अधिकार क्षेत्र संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णित होते हैं। इसलिए संविधान सरकार के हर स्तर के अस्तित्व और प्राधिकार की गारंटी और सुरक्षा देता है।


(iv) संविधान के मौलिक प्रावधानों को किसी एक स्तर की सरकार अकेले नहीं बदल सकती। ऐसे बदलाव दोनों स्तर की सरकारों की सहमति से ही हो सकते हैं।


(v) अदालतों को संविधान और विभिन्न स्तर की सरकारों के अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार है। विभिन्न स्तर की सरकारों के बीच अधिकारों के विवाद की स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय निर्णायक की भूमिका निभाता है।


(vi) वित्तीय स्वायत्तता निश्चित करने के लिए विभिन्न स्तर की सरकारों के लिए राजस्व के अलग-अलग स्रोत निर्धारित हैं।


(vii) इस प्रकार संघीय शासन व्यवस्था के दोहरे उद्देश्य हैं—देश की एकता की सुरक्षा करना और उसे बढ़ावा देना तथा इसके साथ ही क्षेत्रीय विविधताओं का पूरा सम्मान करना ।



प्रश्न 5.1992 के संविधान संशोधन के पहले और बाद के स्थानीय शासन के दो महत्त्वपूर्ण अंतरों को बताइए।



या विकेन्द्रीकरण क्या है? इसके लिए भारतीय संविधान में क्या व्यवस्था दी गई? किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।




उत्तर- जन केन्द्र और राज्य सरकार से शक्तियाँ लेकर स्थानीय सरकारों को दी जाती हैं तो इसे सत्ता का विकेन्द्रीकरण कहते हैं। इसके पीछे बुनियादी सोच यह है कि अनेक मुद्दों और समस्याओं का निपटारा स्थानीय स्तर पर ही बढ़िया ढंग से हो सकता है। भारत में सत्ता के विकेंद्रीकरण के लिए सभी राज्यों में गाँव के स्तर पर ग्राम पंचायतों और शहरों में नगरपालिकाओं की स्थापना की गई थी। लेकिन उन्हें राज्य सरकारों के सीधे नियंत्रण में रखा गया था। इन स्थानीय सरकारों के लिए नियमित ढंग से चुनाव भी नहीं कराए जाते थे। इनके पास न तो कोई अधिकार था न कोई संसाधन।


1992 में संविधान में संशोधन करके लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के तीसरे. स्तर को मजबूत बनाया गया।


(i) अब स्थानीय स्वशासी निकायों के चुनाव नियमित रूप से कराना संवैधानिक बाध्यता है।


(ii) निर्वाचित स्वशासी निकायों के सदस्य तथा पदाधिकारियों के पदों में अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़ी जातियों के लिए सीटें आरक्षित हैं।


(iii) राज्य सरकारों को अपने राजस्व और अधिकारों का कुछ हिस्सा इन स्थानीय स्वशासी निकायों को देना पड़ता है।


(iv) कम-से-कम एक-तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।


 (v) हर राज्य में पंचायत और नगरपालिका चुनाव कराने के लिए राज्य चुनाव आयोग नामक स्वतंत्र संस्था का गठन किया गया है।



दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न 1. भारत में संघीय व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। या भारत में संघीय व्यवस्था कैसी है? इसके चार लक्षण बताइए।



उत्तर- स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान ने भारत को राज्यों का संघ घोषित किया। इसमें संघ शब्द नहीं आया पर भारतीय संघ का गठन संघीय शासन व्यवस्था के सिद्धांत पर हुआ। भारतीय संघात्मक शासन की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -


1. दो स्तरीय शासन व्यवस्था - संविधान ने दो स्तरीय शासन व्यवस्था का प्रावधान किया था-संघ सरकार और राज्य सरकारें। बाद में पंचायतों और नगरपालिकाओं के रूप में संघीय शासन का तीसरा स्तर भी जोड़ा गया।


2. शक्तियों का बँटवारा- संविधान में केंद्र और राज्य सरकारों के विधायी अधिकारों को तीन हिस्सों में बाँटा गया। संघ सूची में राष्ट्रीय महत्त्व के विषय रखे गए जिन पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार को दिया गया। राज्य सूची में कम महत्त्व के विषय थे जिन पर राज्य सरकार कानून बना सकती है। समवर्ती सूची पर राज्य और केंद्र दोनों कानून बना सकते हैं। किंतु टकराव की स्थिति में केंद्र का कानून मान्य होगा।


3. कठोर संविधान - हमारे संविधान में केंद्र व राज्य के बीच सत्ता का बँटवारा लिखित रूप से किया गया है। इसमें परिवर्तन करना आसान नहीं है। इसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास करके कम-से-कम आधे राज्यों की विधानसभाओं से उसे मंजूर कराया जाता है। इस प्रकार कठोर संविधान संघात्मक शासन की प्रमुख विशेषता है।


4. शक्तिशाली न्यायपालिका – संघात्मक शासन में न्यायपालिका की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। भारत में शक्तियों के बँटवारे से संबंधित कोई विवाद होने की स्थिति में फैसला उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में ही होता है।


5. वित्तीय स्वायत्तता - सरकार चलाने और अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को कर लगाने, राजस्व उगाहने और संसाधन जमा करने का अधिकार है। राज्य सरकारों को वित्तीय स्वायत्तता प्राप्त है। 


6. एकीकृत न्यायपालिका - भारत में संघात्मक शासन के कारण केंद्र और राज्य सरकारों की अलग-अलग कार्यपालिका और व्यवस्थापिका है किंतु न्यायपालिका दोनों के लिए एक ही है। ऐसा इसलिए किया गया जिससे केंद्र व राज्यों के झगड़ों का निपटारा किया जा सके।


7. राज्यों के अपने संविधान नहीं हैं- भारतीय संघ के सारे राज्यों को उ बराबर अधिकार नहीं है। भारत के राज्यों के अपने संविधान नहीं हैं।


8. केंद्रीकृत संघवाद - भारतीय संघात्मक शासन अन्य देशों के शासन से भिन्न है। भारत में दो प्रकार की सरकारें होते हुए भी केंद्र को शक्तिशाली बनाया गया है। केंद्र को अधिक अधिकार दिए गए हैं। इसलिए भारतीय संघ को एकीकृत संघवाद कहा जाता है।


प्रश्न 2. भारत का संघात्मक स्वरूप अन्य संघों से किस प्रकार भिन्न है? 


या "भारतीय संघात्मक शासन केंद्रीकृत संघवाद का नमूना है।" इस कथन को तर्क सहित स्पष्ट करें।


उत्तर भारतीय संघात्मक शासन अन्य देशों के संघात्मक शासन से भिन्न है। अमेरिका, कनाड़ा आदि देशों में पूर्ण संघात्मक शासन है। किंतु भारतीय संघ में कुछ एकात्मक शासन की विशेषताएँ भी हैं जो उसे अन्य देशों के संघात्मक शासन से अलग बनाती हैं। भारतीय संविधान की निम्नलिखित विशेषताएँ उसे अन्य देशों के संघात्मक शासन से अलग बनाती हैं


 (i) भारतीय संविधान में कहीं भी संघात्मक शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। इसमें केवल यह कहा गया है कि भारत राज्यों का संघ है।



 (ii) केंद्र सरकार को राज्य सरकारों से अधिक विषय दिए गए हैं। संघ सूची में सबसे अधिक तथा महत्त्वपूर्ण विषय हैं। विशेष परिस्थितियों में, आपातकाल के समय केंद्र राज्य सूची पर भी कानून बना सकता है। यदि राज्यपाल यह सिफारिश करे कि किसी विषय पर केंद्र कानून बनाए तो केंद्र राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बना सकता है। समवर्ती सूची भी केंद्र के कानूनों को महत्त्व दिया जाता है। प्र अवशिष्ट विषय भी केन्द्र के अधिकार में रखे गए हैं। इस प्रकार केन्द्र  सरकार को राज्य सरकार से अधिक अधिकार दिए गए हैं।


(iii) एकीकृत न्यायपालिका– संघात्मक शासन में केंद्र व राज्यों के लिए अलग-अलग न्यायपालिका होती है किंतु भारत में केंद्र और राज्यों के लिए न्यायपालिका का एक ही ढाँचा काम करता है जिसमें सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय, फिर उच्च न्यायालय तथा फिर जिला अदालतें काम करती हैं।


(iv) राज्यों के अपने संविधान, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत नहीं हैं। अमेरिका आदि संघात्मक देशों में राज्यों के अपने अलग-अलग संविधान, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत है किंतु भारत में राज्यों के अपने अलग-अलग संविधान, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत नहीं हैं। पूरे देश का एक संविधान, एक राष्ट्रध्वज व एक राष्ट्रगीत है जो देश को एकात्मकता की ओर ले जाते हैं।


(v) भारत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति केवल भारत का नागरिक कहलाता है। उसे अलग-अलग राज्यों की नागरिकता प्राप्त नहीं होती, जबकि संघात्मक शासन में नागरिक अपने देश का तथा जिस राज्य में निवास करता हो, उसका भी नागरिक होता है, जैसे—अमेरिका में दोहरी नागरिकता है।


(vi) आपातकालीन परिस्थितियों में विदेशी आक्रमण या आर्थिक संकट के समय पूरे देश में शासन का स्वरूप एकात्मक हो जाता है। राज्य सरकारों को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया जाता है। सभी अधिकार केंद्र सरकार के पास आ जाते हैं।


इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत में ऐसा संघात्मक शासन है जिसका झुकाव एकात्मकता की ओर है। यह कभी भी आवश्यकतानुसार एकात्मक स्वरूप ग्रहण कर सकता है।


प्रश्न 3.शासन के संघीय और एकात्मक स्वरूपों में क्या-क्या प्रमुख अन्तर हैं? इसे उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट करें।




उत्तर- शासन के संघात्मक तथा एकात्मक स्वरूप में अन्तर शासन के संघात्मक तथा एकात्मक स्वरूप में निहित अन्तर को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है


(i) संघात्मक शासन में दोहरी शासन व्यवस्था होती है—एक केन्द्र स्तर पर तथा दूसरी राज्य स्तर पर, जबकि एकात्मक शासन में सम्पूर्ण शक्तियाँ केन्द्र में निहित होती हैं। प्रान्तों की शासन व्यवस्था केन्द्र के अधीन होती है। संघात्मक व्यवस्था में शक्तियाँ केन्द्र तथा राज्यों में विभाजित होती हैं। अमेरिका, बेल्जियम तथा भारत में संघीय व्यवस्था है। भारत में 28 राज्य हैं, जबकि अमेरिका में राज्यों की संख्या 50 है। ब्रिटेन तथा श्रीलंका में एकात्मक सरकारें हैं।


(ii) संघात्मक शासन व्यवस्था में लिखित तथा कठोर संविधान का होना अत्यावश्यक है, जैसा कि अमेरिका का संविधान है, जबकि एकात्मक शासन के लिए यह अनिवार्य शर्त नहीं है। ब्रिटेन में अलिखित तथा लचीला संविधान है।



(iii) संघात्मक शासन व्यवस्था में दोहरा संविधान तथा दोहरी नागरिकता का प्रावधान होता है, परन्तु भारत में संघीय शासन व्यवस्था होने के बावजूद भी इकहरी नागरिकता तथा इकहरा संविधान है। एकात्मक शासन में इकहरी नागरिकता तथा इकहरा संविधान होता है। 


(iv) संघात्मक शासन व्यवस्था में न्यायपालिका का स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष होना अति आवश्यक है, जबकि एकात्मक शासन के लिए यह आवश्यक नहीं है।


प्रश्न 4. भारत में पंचायती राज व्यवस्था का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।



 उत्तर- भारत में गाँवों के स्तर पर मौजूद स्थानीय शासन व्यवस्था को पंचायती राज के नाम से जाना जाता है। भारत में पंचायती राज का त्रिस्तरीय ढाँचा पाया जाता है। निचले स्तर पर ग्राम पंचायत, उसके ऊपर पंचायत समिति तथा सबसे ऊपर जिला परिषद् काम करती है।


1. ग्रामीण स्तर–ग्रामीण स्तर पर, प्रत्येक गाँव में एक ग्राम पंचायत होती है। यह एक तरह की परिषद् है जिसमें कई सदस्य और एक अध्यक्ष होता है। सदस्य वार्डों से चुने जाते हैं और उन्हें पंच कहा जाता है। अध्यक्ष को प्रधान या सरपंच कहा जाता है। इनका चुनाव गाँव में रहने वाले सभी वयस्क व्यक्ति करते हैं। यह पूरे पंचायत के लिए फैसला लेने वाली संस्था है। पंचायतों का काम ग्रामसभा की देख-रेख में चलता है। इसे ग्राम पंचायत का बजट पास करने और इसके काम-काज की समीक्षा के लिए साल में कम-से-कम दो या तीन बार बैठक करनी होती है।


2. पंचायत समिति- कई ग्राम पंचायतों को मिलाकर पंचायत समिति का गठन होता है। इसे मंडल या प्रखंड स्तरीय पंचायत भी कह सकते हैं। इसके सदस्यों का चुनाव उस इलाके में सभी पंचायत सदस्य करते हैं।


3. जिला परिषद्- किसी जिले की सभी पंचायत समितियों को मिलाकर जिला परिषद् का गठन होता है। जिला परिषद् के अधिकांश सदस्यों का चुनाव होता है। जिला परिषद् में उस जिले से लोकसभा और विधानसभा के लिए चुने गए सांसद और विधायक तथा जिला स्तर की संस्थाओं के कुछ अधिकारी भी सदस्य के रूप में होते हैं। जिला परिषद् का प्रमुख इस परिषद् का राजनीतिक प्रधान होता है।




प्रश्न 5. भारतीय संघ में केन्द्र-राज्य सम्बन्धों का वर्णन कीजिए| 


 उत्तर- केन्द्र-राज्य संबंध-सत्ता की साझेदारी की संवैधानिक व्यवस्था वास्तविकता में कैसा रूप लेगी यह ज्यादातर इस बात पर निर्भर करता है कि शासक दल और नेता किस तरह इस व्यवस्था का अनुसरण करते हैं। काफी समय तक हमारे यहाँ एक ही पार्टी का केन्द्र और अधिकांश राज्यों में शासन रहा। इसका व्यावहारिक मतलब यह हुआ कि राज्य सरकारों ने स्वायत्त संघीय इकाई के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं किया। जब केन्द्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकारें रहीं तो केन्द्र सरकार ने राज्यों के अधिकारों की अनदेखी करने की कोशिश की। उन दिनों केन्द्र सरकार अक्सर संवैधानिक प्रावधानों का दुरुपयोग करके विपक्षी दलों की राज्य सरकारों को भंग कर देती थी। यह संघवाद की भावना के प्रतिकूल काम था।


1990 के बाद से यह स्थिति काफी बदल गई। इस अवधि में देश के अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ। यही दौर केन्द्र में गठबंधन सरकार की शुरुआत का भी था। चूँकि किसी एक दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिला इसलिए प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों को क्षेत्रीय दलों समेत अनेक पार्टियों का गठबंधन बनाकर सरकार बनानी पड़ी। इससे सत्ता में साझेदारी और राज्य सरकारों की स्वायत्तता का आदर करने की नई संस्कृति पनपी। इस प्रवृत्ति को सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े फैसले से भी बल मिला। इस फैसले के कारण राज्य सरकार को मनमाने ढंग से भंग करना केन्द्र सरकार के लिए मुश्किल हो गया। इस प्रकार आज संघीय व्यवस्था के तहत सत्ता की साझेदारी संविधान लागू होने के तत्काल बाद वाले दौर की तुलना में ज्यादा प्रभावी है।



देखें👉👉



👉👉👉up board class 10 social science chapter 10

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👉👉👉class 10 social science chapter 6


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